Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
२३७
सप्तदश-चंद्र प्रज्ञाप्त सूत्र पा-मात
तत्थ लोइयाण मासा सावणे भद्दवे अस्सोए जाव आसाढे ॥ लोगुत्तरियाणं मासा अभिनंदे, सुपइटेय, विजये, पीतिवद्धणे, सेजंसेय, सिवेय, सिसिरेय, हेमवंत, वसंतमासे,कुंसुमसंभवे निदाहे,वणविरोहिय॥इति दसमस्स एकोनविसति पाहुड॥१९॥
ता कहते णं संवच्छर आहितेति वदेज्जा? ता पंचसंवच्छ आहितेति वदज्जातंजहा णक्खस नाम. लोकिक बारह मास के नाम श्रावण १ भाद्रपद ३ आश्विन ४ कार्तिक ५, मगशिर ६ पोष ७ महा ८ फाल्गुण ९ चैत्र २० वैशाख ११ जेठ और १२ अशा द. यह बारह मास लोक प्रसिद्ध हैं. लोकोत्तर वारह पास के नाप-१ अभिनंदन, २ समतिष्ठित, ३ विनय ४ प्रीतिवर्धन, ५ सेजा श्रेय, ६ सीव ७मितिरेय १८ हिमवंत ९ वसंत १० कुमुमसंभव. ११ निदाध और १२ वनविरोध. यह दशवा पाहुडा
का मुन्नोमवा पाहुडा संपूर्ण ॥ १० ॥ ११ ॥ है अब दशवे पाहड़े के इक्कीसवे पाहुढे में पांच संवत्सर की वक्तव्यता कहते हैं. अहो भगवन्! आपके मतमें संवत्सर किस प्रकार कहा ?अहो शिष्य! पांच संवत्सर कह हैं.१ नक्षत्र संवत्सर सो जितने काल में अठाइन नक्षत्रों चंद्रमा की माथ २७ दिन और २१ भाग ६७ ये परिपूर्ण हाये उसे बारह गुणे करने से ३२५ दिन ५१ भाग ६७ का एक नक्षत्र संवत्सर होवे. २ युग संवत्सर १८३० दिन में पांच संवत्सर पूर्ण
480% दशवा पाहुडे का उन्नासका अंतर पाहुडा 4280
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org