Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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विसाहा, अणुराहा ।तत्थणं जेते पक्खंत्ता जेणं चंदरस दाहिषणवि पमेद च जाग जोएति. तेणं दुवे तंजहा-पुष्यासाढा,उत्तरासाढसव्व वाहिर मंडलं जोयं जोतिसुवा, जोएतिवा|तत्थणं जसे णकखसे जेणं सया पमहूँ जोग जोएति साणं एगा जेट्रा॥१॥ ता कतियाणं चंदमंडला आहितति वदेजा, ता पन्नरस चंदमंडला आहितेति वदेजा. ता एतेसिणं पन्नरसण्हं चदमंडालाणं अत्थि चंदमंडला जेणं सया णक्खत्ताणं अविरहिया अस्थि चंदमंडला, जेणं सयाणक्खतेण विरहिया. अस्थि - ।
48.अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमेलक ऋषिकी+
से भाग देना. इस से २१७७१४ होवे, इस को योजन करके के लिये ४२७ का भाम देना इस से ५०९ योजन व ५३ भाग ६१ ये हुवे. यह चंद्रमा का विकंप क्षेत्र कहा. अब मूर्य के मंडल पर चंद्र का मंडल कितना रहकर माश्र हो सो नोकालने की विधि-इस की धून राशि नीकालने की रीति एक मंडल से दूसरे मंडल तक सूर्य का विकंप क्षेत्र दो योजन ४८ भाग ६. या का है, इसके ६१ भाग रने के लिये दो योजन को ६१ से गुण कर ४८ .माल ना. २४६१-१२२-४८ १७* इस के चूरणीये मातये भाग करने को सात से गुणा कम्ना. १७०४७११९२ प्रथम धृव संख्यात जानना. अब दूसरा य आंक कहते द्रमा एक मंडलस दूसरे मंडल जाते विपक्षत्र ३६ ये जन २० भाग ६१ ये४ भाग सातिये का,इस के चूराणये मत भाग करने को. ३६४६१=२१९६+२५%D१२२१४७%3D१५५४७३
कायक रानाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालापसाद जी .
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