Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
असू
सप्तदश चंद्रप्रजाति सूक्षष्ठ उपाङ्ग 48
अभंतरं, तचमंडलं उसकमित्ता चारं चरति, ता जयाणं सूरिए अब्भंतरे तचमंडलं उवसंकभित्ता चारं चरात तयाणं पंच जोषणाइं पण्णतसिंच एगद्रीभागे जोयणस्स दाहिं रातिदिएणं विकंपावतित्ता चारं चरति, तयाणं अट्रारस महत्ते दिवसे भवति चउहि एगट्ठी भाग मुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालम मुहुना राई भवति चउहिँ एगट्ठी भाग अहिया ॥ एवं खल एएणं उवाएणं निक्खममाणे सरिए तयाणतरं मंडलातो मंडलं संकममाणे दो दो जोयणाई अडतालीसंच एगट्टी भागे जोयणरस एगमेगेणं मंडले एगमगणं रातिदिएणं विकंपमाणे २ सय बाहिरं मंडल उवसंकर्मित्ता चारं चग्इ, ता जयाणं सरिए सबब्भंतरं मंडलातो उवसंकमित्ता सव्व बाहिरं मंडलं उरसं..
488+ पहिला पाहुडे का छठा अंतर पाहडा 488+
रात्रि में अभ्यन्नर तीसरा मंडलपर रहार चाल चलता है. जब आभ्यन्तर तीसरा मंडलपर रहकर सूर्य चाल चलता है तब पांच योजन व एकसठिय पेंतीस भाग (५ ) जितना क्षेत्र दो रात्रि दिन में उल्लंघ कर चाल चलता है. तब एस ठये चार भाग कम अठ.र ह मुहून का दिन व चार भाग अधिक है - चारह मुहूर्त की रात्रि होती है. इसी तरह से नीकलता हुवा सूर्य एक पीछे एक मंडल को संक्रमता हुवा २ योजन का क्षेत्र एक रात्रिदिन में उईघता हुवा सब से बाहिर के मंडल पर रहकर चाल चलता है.org जब सूर्य सब से बाहिर के मंडलपर रहकर चाल चलता है तब १८३ रात्रि दिन में ५१० योजन क्षेत्र ।
42
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org