Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवमाहं ॥ ७ ॥ एगेपुण एवमाहंसु ता छत्तागार संठियाणं मंडल संठिति आहिति वदेज्ज | ॥ एतेणं नाएणं यव्वं नोचवणं इतरेहिं ॥ ढमस्स सत्तमं पाहुडं सम्मचं ॥ १॥ ७ ॥ ता सव्वात्रिणं मंडलं च केवतियं बाहल्लेणं केवतियं आयाम विक्खभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेजा, तत्थखलु इमातो तिन्नि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओं तजहा- तत्थेगे एव माहंसु ता सव्वाणिं मंडलंत्रया जोयण बाहल्लेणं एगजीयणं सहस्सं एगंच तेत्तीसं
में भगवंतने अपना अभिप्राय कहा. अर्थात् चित्ते छत्राकार मंडल का संस्थान है. ( अन्य स्थान अर्ध कविठ फल जैसा कहा है वह अर्ध कवि के फल का समविभाग उपर कीया हुवा और छत्र आकार बनाया। बही जानना परंतु अन्य इन सूत्रों से नहीं जानना. वह प्रथम पाहुडाका सातवा अंतरपाहुडा हुआ। ॥ १ ॥७॥ अब आठवा अंतर पाहुडे में प्रमाण कहते हैं—प्रश्न - सव मंडल कितने जाडे हैं कितने लम्बे हैं, कितनी परिधि वाले हैं ? उत्तर- इस में तीन पडिवृत्तियों कही है. इस में कितनेक ऐसा कहते हैं कि सबही मंडलं पृथक् २ एकेक योजन के जाड़े हैं. एक हजार एकसो तेत्तीस योजन के लम्बे चौडे {हैं, और तीन हजार तीनसों न्यावे योजन की परिधि वाले हैं २ कितनेक ऐसा भी कहते है कि वे सब { मंडल एक योजन के जाडे हैं, एक हजार एकसो चौतीस योजन के लम्बे चौड़े हैं और तीन हजार चारसो दो ( ३०४०२) योजन की परिधि वाले हैं. ३ कितनेक ऐसा
कहते हैं कि वे सब मंडले एक योजन
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• प्रकाशक- राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी*
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