Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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१.४३
-4HI AD-BhARI
ला भूरियरसागं उच्चं तं लेसंच पडुच छाया उद्देस उचंत्तं छायं. पञ्चले मुद्देसेलेसंचछायंच पडच्च उचत्त उहेलो ॥ २ ॥ तत्य खल इमाती दो पडिवत्तीओ पणत्ताओ तंजहा एगे एव माहं मु ता अस्थिणं र दिवले जंसिंच। दिवमंमि मरिए च उपं रमिच्छायं निवचेति अहवा दुपुरिसीच्छाया निवत्तीत आहितति देवा, एगेव महसु ॥ १ ॥
एगेषण एव माहमु-ता अत्थिणं से दिवसे जंसिं चगं दिवससि सरिए दुपातिंस छायं निवस्पोरलेल्या हान होती है अर्थत् मध्यान्ह पीछे सुर्य अस होता जाव स्यों छाया बढती जावे यह दूसरा उदेशा लेश्या व छाया दोनों आश्री अर्थात् मध्यान्ह समयमें सूर्य अपने मस्तकपर रहताहै इससे छायां आगे पीछे नहीं होती है यह तीसरा उद्देशा. यह लेश्या का स्वरूप कहा॥२॥ पुरुष छायां प्रमाण में अन्यतीथि कहते हैं. इसमें अन्यतीथिकी दो पडिवृत्तियो कही हैं. कितनेक एमा कहते हैं कि दिनमें जब सूर्यका उदय होता है तब उदित होता मर्य चार पुरुष की छाया बनावे. अथवा उदित होता सूर्य दो पुरुष छाया बनाये और २ कितनेक ऐसा कहते हैं दिन में उदित होता मूर्य दा पुरुष छाया बनावे अथवा किंचिन्मार छाया बनाये नही. उनमें जो अन्यतीथि एसा कहते हैं कि ऐसा दिन हैं कि जिस में उदित हो /चार पुरूष छावा बनावे अथवा ऐसा भी दिन है कि जिस में उदित होता सूर्य दो पुरुष छाम बातो.
24+8+ नववा पाहुडा +
8+
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