Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पढमयाए सायं चंदेणसद्धि जोगंजोएतिता जोगंअणुपरियति जोगं अणुपरियहित्ता सायं चंदे सतभिस ताणं समापितिता सतभिसता खलु णक्खत्ते गंत्तं भागे अवड्डखत्ते पण्णरस मुहुत्ते तं पढमयाए मायं चंदणंसहिं जंग जोतेति नोलभइ अवरं दिवसं ॥ एवं खलु सयाभसया णक्खत्ते एगरातिं चंदणसद्धिं जोगं जोतेति जोगजोतेत्ता जोगं अणुपरियट्टित्ता, पातोचंदे पुवाणं पाढवयाणं
4. अनुवादक-पालबह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
साधिक एक दिन पर्यंत चंद्रमा साथ रहते हैं अर्थात् युगके दूसरे दिन में दूसरा श्रवण नक्षत्र की १९४७ भाग में समाप्ति होवे वहां से चंद्रमा उस नक्षत्र से पीछा नीवर्ते फीर युग के दूसरे दिन में १९ मुहूर्न २४ भाग ६१ ये ३९ भाग ६७ ये गये पीछे पश्चातभाग संध्याकाल में धनिष्टा नक्षत्र का योग होवे दूसरे दिन के उक्त साधिक ९ मुहूर्त व्यतीत होते और शेप ८ महूर्त ३२ माग ६१ ये२८१ भाग ५७ ये शेष रहे उस के प्रथप समय में संध्याकाल से धनिष्ठा नक्षत्र तीस मुहूर्न योग कर. योगी कर के युग के तीसरे दिन में ९ मुहर्न २४ भाग ६१ ये ३० भाग ३७ ये तक में योग की समाप्ति करे। और दिन का ८ मुहूर्न ३: भाग ६१ में २८ भाम ६७ शेप रहे. इस के प्रथम सपय में संध्याकाल से शतभिषा नक्षत्र प्राप्त होवे, यह नक्षत्र नक्त भागी [ रात्रि भाग ) पन्नाह मुहूर्त का होवे, इस से दूसरा दिन
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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