Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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समदस चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र-षष्ट उपाङ्ग
पातोचंदे रोहिणीणं समंम्पिति रोहिणि जहा उत्तरभदवया, मिगसिरं जह धणिट्रा, एवं अदा जहा सतभिसया तहा ननं भागा णेयब्बा, जहा पुचभद्दवया तहा पुवाभागा छप्पिनयव्या, जहा धणिटा तहा पच्छा भ गा यव्या जहा सतभिसया तहा णतं भागा थव्या जहा उतरा भद्दवया तहा उभय भागा यव्या, जाव एवं खलु उत्तरासाढा खत्ते दाय दिवमे एगंचराति, चदेणसद्धिं जोगं जोतेति २ त्ता जागं
अणुपरियति २त्ता, सायं चंदे अभिति सवर्ण समप्पिति॥दसमरस चउत्थं पाहुडं समत्तं ॥ ६१ ये ३९. भाग ६७ ये गये पीछे योग पूर्ण करे, जैसे पुर्व भाद्रपद नक्षत्र का कहा वैसेही पूर्व भागी छ नक्षत्रों का कहना. वे प्रातःकाल में चंद्र की साथ तीस मुहू एक रात्रि एक दिन तक रहे; धनिष्टा का कहा वैसे ही पश्चान भागी नक्षत्र का कहना. वे सायंकाल में चंद्रमा साथ तीस मुहुर्त तक योग करते हैं. जैसे शतभिषा का कहा वैभेही नक्त भागी का कहना. यह सायंकाल में चंद्रकी साथ पन्नरह मुहूर्त तक रहे, यों नक्षत्रां रात्रि में ही पुर्ण होवे, दूसरे दिन तक रहे नहीं, जैसे उत्तराभाद्रपदका कहा है वैसे उभय भागो जानना. चे प्रातःकाल से चंद्र साथ ४५ मुहूर्त में दो दिन एक रात्रि तक
रहे, यों उत्तराषाढा नक्षत्र दो दिन एक रात्रि तक चंद्र की साथ योग करके सायंकाल में अभि2जित नक्षत्र का योग होवे, अहो अयुष्यमत श्रमणो ! युग की आदि में नक्षत्र मास का योग कहा.
यह दशवा पाहुडे का चौथा अंतर पाहुडा संपूर्ण हवा. ॥ १० ॥ ४॥
दशवा पाहुडे का चौथा अंतर पाहुडा 4.9
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