Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4884 सप्तदश- चंद्रप्रति सूत्रपात 44+
पच्छा अवरदिवस एवं खलु रेवति णक्खत्ते, एगं राई एगंच दिवमं चंदेणसि जोगं जोएति २ चा जोगं अणुपरियद्वंति २ ता सायं चंदे अस्सणिणं समप्पति ता अस्सणि खलु णक्खत्ते पच्छाभागे समखेत्ते तिसति मुहुचे पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोगं जोएति २त्ता, ततो पच्छा अवरं दिवस, एवं खलु अस्सणि नक्खत्ते, एग च रायं एगंचदिवसं चंदेणसद्धि जोगं जोतेति २ सा जोगं अणुपरियहति २ त्ता सायं चंदे भरणीणं समप्पिति ता भरणि खलुणक्खत्तेणत्तं भागे अवखेत्ते पण्णरस मुहुत्ते तं पढमयाए
ये तक रहे. तत्पश्चात प्रथम समय में भरणी नक्षत्र आवे. यह भरणी नक्षत्र नक्तभागी अर्धक्षेत्री { पारह मुहूर्त का है. इस से इस का योग हुने पीछे इस नक्षत्र में दूसरा दिन नहीं आसकता है; परंतु रात्रि में ही यह नक्षत्र पूर्ण होता है. रात्रि के ६ मुहूर्त ४० भाग ६१ ये ३९ भाग ६७ ये तक यह नक्षत्र [ रहता है. इतना रात्रि समय गये पीछे प्रथम समय में कृत्तिका नक्षत्र प्राप्त होवे. यह पूर्वभाग समक्षेत्र तीस महूर्त का है. यह नक्षत्र युग के आठवे दिन की रात्रि के ६ मुहूर्त ४० भाग ६१ ये ३९ भ.ग ६७ ये गये पीछे प्रथम समय में लगता है, प्रातःकाल में चंद्रमा की साथ योग करे. एक दिन एक रात्रि तक चंद्रमा की साथ तीस मुहुर्त में योग करे, और युग के नववे दिन के रात्रि में ६ मुहर्त ४२ भाग ६१ ये ३९ भाग ६७ ये गये पीछे निवर्ते. इस से आगे प्रातःहाल में गेोहिणी नक्षत्र
यह कृत्तिका नक्षत्र
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दवा पाहुडे का चौथा अंतर पाहुडा
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