Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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श्री अमोलक ऋषिजी
णक्खत्ते जेणं नक्खना तेरस अहोरत्ते दुवालस मुहुत्ते सूरिएणं साई जोएति. कयरे णक्खत्ते जे गक्खत्ता वीसं अहारत्ते तिन्निय मुहुरो सूरिएणंसद्धिं जोगं जोएति? ताएयासिणं अट्ठावीसाए नक्ख ताणं जे से णक्खत्ते चत्तारि अहोरत्ते उच्च मुहुत्ते सूरिएणं सद्धिं जोगं जोएति सेणं एगे अभिए एवं वयासी उच्चारेया जाव तत्थणं जेते णक्खत्ता वीस अहोरत्ते तिष्णिय मुहत्ते मृरिएणसद्धि जोगं जोएति
जितने नक्षत्र चंद्र की साथ १५ महून योग करते हैं वे एक युग में १००५ मुहूर्त में योग करते
क्यों कि १५ को ६७ का भागदेने से १००५ होवे, इस को ३० का भागदेन से ३३॥ अहोरात्रि होवे. है और इस को पांच का भागदने से ६ अहोरात्रि व २१ मुडून होवे. जो ३० मुहूर्त में योग करते हैं. इनको ६७ से गुनाकार करने से २०० होचे, उम फोर ३० का भागदेने से ६७ होवे उसे पांच का भाग देने से १३ अहोरात्रि और १२ मुहर्न हुए. जो नक्षत्र चंद्र की साथ ४५ मुहूर्त योग करते हैं उम ४५ को ६७ से गुनने से ३०१५ मुहूर्त होबे, उमे ३० का भाग देने से १००॥ अहोरात्र होवे, उसे पांच का भाग देने से २० अहोरात्रि व तीन
न होवे. इछ का यहां यंत्र देते हैं.
प्रकाशंक-राजाबदुर लाल सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमाद ने
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