Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सत्र
अर्थ
48- सप्तदश चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग 448
मुहते सूरिएणं सद्धिं जोगं जोएति ॥ता एतेसिणं अट्ठाविसाए णक्खत्ताणं कयरे जक्खते जेणं नक्खत्ता चत्तारि अहोरचे छच्चमुहुत्ते सृरिएणं साईं जोगं जोएति ॥ करे णंक्खत्ते जेणं छ अहोरते दुबालस मुहुते सरिएणं सद्धिं जोगं जोएति ॥ करे
की साथ ९ मुहूर्त व सडसटिये २७ भाग योग करे वह नक्षत्र सूर्य की साथ चार अहोरात्रे छ मुहूर्त योग करे, चंद्र की साथ जो छ नक्षत्र १५ मुहूर्त योग करे वही छ नक्षत्र सूर्य की साथ छ अहोरात्र २१ { मुहूर्त योग करे, चंद्र की साथ जो पनरह नक्षत्र तीस मुहूर्त योग करे वे ही सूर्य की साथ १३ अहोरात्र १२ मुहूर्त योग करे, चंद्र की साथ जो छ नक्षत्र ४५ मुहूर्त योग करे। वे ही सूर्य की साथ बीस अहोरात्र तीन मुहूर्त योग करे. ऐसा योग होने की विधि बताते हैं. एक युग में चंद्रमा साथ नक्षत्र ६७ वार योग करते हैं, और सूर्य साथ पांच बार योग करते हैं. जो नक्षत्र चंद्रकी साथ ९ मुहूर्त ६० ये
५
२७ भाग योग करता है उस को ६७ से गुना करना क्योंकि एक युग में ६७ वार चंद्रकी साथ योग करता है. इस से ×६७६३० मुहूर्त होबे इस को एक अहोरात्र के ३० मुहूर्त होने से ३० का भाग देना, जिससे २१ होवे. यह २१ दिन चंद्रकी साथ योग करे. योग करे, इससे इन को पांच का भांगदेने से चार अहोरात्र और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
यही नक्षत्र पांच बार सूर्य की साथ मुहूर्त में सूर्य की साथ योग करे.
4* दशा पाहुडे का दूसरा अंतर पाहुडा 48
१५९
www.jainelibrary.org