Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
१४३
अनुवादक-बालकाचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी.
वजा एंगे एकमहिंमुता कति कटुंते सरिर पौरसिछाये निव्वत्तेति, आहितेति वदेजा, तत्थ खलु इमातो छणवति पांडबत्तीओ-तत्थ एगें एवभाह ता आस्थणं से दिवसे सिचणं दिवमसि मारिए एग परिसिछायंनिव्वत्तेति आहितेति. घरेजा, एगे एवं मासु ॥ ॥ एगे-पुण ता अस्थिणं से दिवमे जैसिंचणं दिवसंसि : सरिए दुपारसि च्छायं निव्वत्तेति. आडितति वदेजा ॥ एवं एएणं अभिलावणं जाव छण्णउति पोरसिच्छायं निव्यततितित्थ जते एव माहंमु ता अत्थिणं से दिवसे सि
वणं दिवसंसि मुरिए एग परिसिच्छायं - निवत्तेति लेणं एवं मासु ता सूरिए मुहुर्त में व अस्त मुहुर्न में. उस की लश्या की भी हानि वृद्ध नहीं है क्यों की पुरुष छ या वनारे न॥३॥ गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं. कि कितने काष्ट प्रमाण मर्य पुरुष की छाया बनाता है ? उत्तरइस में अन्यतीविकी प्राण। हाम्नु पाउं त्तयों कहा हैं तद्यथा कितनेक एसा कहते हैं कि किसी दिन सूर्य एक पुरुष छाया बनावं अर्थ जा पदार्थ जितना उभ्या डोये उतनी छायाँ बनाने, २.दुसरा अन्यतीथि
मा.काते हैं कि दिन में सुर्य दो पुरुष छाया बनाव अर्थात् मा पदार्थ होवे उसे दुगुनी छाया बनावे, इसी तरह में तीसरा अन्यत: तीन. पुरुष छाया बनाने का कथन करे, यावत् चाणवा पंचाणरे पुरुष की छाया बनाने.का.कहे और .छन्नुवा अन्यती छन्नु पुरुष छापा बनाने का कहे.
• प्रकाशक गजाबहादुर लाला मुखदेव सहायनी ज्या
1
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org