Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तैति आहितति वदेजा एगेएवमासु ॥ तत्थ जेते एवं मासु अस्थिणं से दिवसे सिवर्ण दिवसं करिए च उपोरसी छायं निवत्तेति अहवा अत्थिणं से दिवसे जंसिचणं दिवससि भरिए. दुपारमिच्छ.यं नियत्तेत, ते एव माई।, ता जयाणं पुरिए सन्नभंतरं मंडलं. उसंकमित्ता चार वागते तपाणं उन उसे अट्ठारस मुहु ते दिवस जहण्णए दुवालस मुहत्ताराई भवाते, तसेच दिवसति सूरिए च उपारसि छायं निव्वत्तेति तंजहा उग्गमण मुहुसिच, अत्थमण मुहुसिच तलेस्स अभिकद्वेभाणे वा, निवुह्रमाणेवा॥ ता जयाणं
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जन का कथन इस तरह है कि जब सूर्य मय से आन्तर पारले पर होता है तब उत्कृत अठारह मुहूर्त का दिन व अघन्य वारह महु की गति होती है. उस दिन उदित होता मूर्य चार पुरुष छाया बना उदित मन में से ला त पुरु। छाया बनाये जमिन होता हुवा सूर्य लेश्या की
द करे और अस्स हाना सूर्य लेश्या की हानि कर. भाना सूर्य से आभ्यंतर मंडमपर र तर उत्कृष्ट अठारह मूर्त की रात्रि व जयन्य बारह महू का दिन होता है. इस दिन सूर्य दो पुरुष छापा नावे उद्गपन मुडून व असामर्न में दो पुरुष उ.या बनावे. उदित होता मूर्य लेश्या की वृद्धि करे और अस्त होता सूर्य लयाकी हानि करे. यह प्रथम अन्यतीर्थीका कथन हवा. जा अन्यतीधिक ऐसा कहते
डे उदित झना सूर्य किसी दिन में दो पारसी छाया बनाता है उन का कथन इमसे है कि जब
प्रकाशक-राजाबादुर लाला मुखदेवसमायनी ज्वाजापसावजी .
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