Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पमुक-चालनमचारी मुनि श्री अबोलक
जणि जम्बूद्दीवे २ दाहिबई गिम्हाणे पढमे समए पाडेवमति तयाणं उत्तर ई वि. गिम्हाणं पढ़मे समए पड़िवजति ता जयाण उत्तर दाहिणद्ध गिम्हाणं पढमे समए पहिवाजति तयाणं जम्बुद्दीचे २ पुरास्थिम पचास्थमण अण्णता पुराकडे काल समयसि गिम्हाण पढमे समए पडिवजति एतस्स दस लावगा जाव ऊऊ भाणिवाला जयाणं जद्दीवेदीव दाहिगडू पढम समए अयमाण पडिवजात तयाणं उत्तरहेवि पढम ममए अयमाणे पडिवजाति,अयाणं उत्तरष्टुं पढमस्मए अयमाण पडिवजति तयाणं अंदीवे
दीवे मंदररस पवयस्स पुरथिमेणं पञ्चस्थिमणं अणसरपुराकई कालसमयसि पढम अयमाणे के दक्षिणा में प्रेम ऋतु का प्रथम ममय होता है तब उत्तरार्ध में भी प्रथम समय होता है. जब जम्बूद्वीप के उत्तर दक्षिण में क्रयत का प्रथम समय होता है तब जम्बुद्वीप केक पूर्व पश्चिम मे अनंतर पुन काल में श्रीपत का प्रथम ममय बना है या इभ के भी तु पन दश भालापक कहना ॥ ७ ॥ जब जम्बूद्वीप के दक्षिण में प्रथम अयन हानी है तब उसा में भी अयत होती है और ना उत्तर दक्षिण में प्रथम अयन होती है तब जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व पश्चिम में अनंतर गहन काल में अर्थात् दूसरे समय में अयन का प्रथम समय होता है. जब मदीप के मेरु से पूर्व में ।
• कायाक राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालापमाद भी
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