Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
4. अनुवादक -बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चिट्ठीभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, अणियया आयाम विक्खंभेणं परिवखे
वेणं आहितेति वदेज॥॥ १॥ तत्वणं को हेतु वदेज्जा ? ताअयणं जंबूद्दीवेदीवे जाव परिक्खेवेणं, ता जाणं सुरिए सव्वव्यंतरं मंडलं उवसंकमित्ता, चारं चरति, तयाणं मंडलवया अडयालीसंच एगट्टी भाग जोपणस्स बाहल्लेणं, णवणउति जोयण सहरसाई छच्चचत्ताले जोण ते आयाम विक्खेभेणं, तिण्णि जोयण सहस्साति एगुणउति जोयणाइ परिक्खेवेणं ॥ तयाणं उत्तम कट्ठपत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालस मुहुत्ता योजन का लम्बा चौडा है, क्यों कि सब से आभ्यंतर का मंडल जम्बूद्वीप की जगती से १८० योजन अंदर है इतना ही पश्चिम दिशा में है दोनों मीलाने से ३६० योजन होते हैं. योजन एक लाख योजन के जम्बूद्वीप में से कम करते शेष ९९६४० योजन का मंडल लम्बाइ चौडाइवाला रहता है, इस की परिधि तीन लाख पन्नरह हजार निव्यासी ३१५०८९ योजन व्यवहार से जानना. निश्चय से २१५०८९ योजन एक कोश, ७३८ धनुष्य, ४५ मंडल, ४ बालाग्र के ६३०१७८ भाग में से ३४३९०२ भाग जितनी परिधि है.
यव, ४ यूका, ६ लिंख और एक इस मंडल पर सूर्य आता है तब
अठारह मुहूर्त का दिन व बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. इस मंडल से नीकलता हुवा सूर्य नवे संवत्सर में प्रवेश करता हुवा प्रथम अहोरात्र में आभ्यन्तर मंडल से अनंतर दसरे मंडल पर जाकर चाल चलता है.
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राई
पूर्व दिशा में
उक्त ३६०
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी ।
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