Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्र
सनदश चंद्र मज्ञप्ति सूत्र-टप उपाङ्ग
अणुपविसति, एगै एवंमाहंस ॥६॥ एगेपुण एयमाहंस-ता पुरथिमिजातो लोगंतातो पातो सूरिए आउकायंसिउत्तिटुंति, सेणं इमं लोगं तिरियं करेति. २ त्ता पचत्थिमिल्लसि लोगंसि सायं सूरिए आउकाय अणुपविसइ २त्ता, अहे पडियागच्छति २सा पुणरवि अवरभू पुरथिमिल्लातो लोगंतातो पातो सूरिए आउकायंति उत्तिटुंति, एगे एवमासु ॥ ७ ॥ एगे पुण ९वमाहंमु-ता पुरथिमिल्लातो लोगंताओ यहुई जोयणाई, बहूई जायणसयाति, बहूई जोयणसहस्साति उट्टे दूर
उप्पतित्ता एत्थणं पातो सूरिए आगासातो उत्तिटुंति, सेणं इमं दाहिणद्वंलोगं तिरियं करता है. और वहां अधोलोक प्रकाश करता है. फोर वहाँ से पूर्व के लोकान में प्रगट होता हुवा सूर्य पृथ्वी में से नीकलता है ६ कितनेक एसा कहते हैं. कि पूर्वदिशा के लोकांत में प्रातःकाल में उदय होता हवा सूर्य अप्काय-समुद्र में स नीकलता है और तीच्छी लोक में प्रकाश करके संध्या समय पश्चिम दिशा के लोभमद में प्रवेशकर अस्त हो जाता है. ७ कितनेक ऐसा कहते हैं कि पूर्वके लोगों में प्रात: समय में भूर्य
अ समुहको समुद्र में से नीकलता यह तीर्छालाक में प्रकाश करता हुवा सध्या समय पश्चिम के लोकांनमुद्र में प्रवेश करता है. वहां नीचे जाकर नीचे के लोक से पर्वक लोक के अंत में प्रगट होकर मर्य अपाय में से नीकलकर रहता है ८ कितनेक ऐना कहते कि पूर्व के
8. दूसरा पाहुड क पहिला अंतर
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