Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र |
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एगेपुण एव माहंस, ता पुरथिमिल्लातो लागंताओपादो मूरिए आगासातो तिट्ठइ सेणं इमं लोगं तिरियं करेति २ सा पच्चत्थीमलंसि लोगसि सायं सरिए आगासं अणुपविसइ २ त्ता अहे पडियागच्छति, अहे पुणरवि अवरभू पुरथिमिल्लातो लोगंतातो पासा मरिए आगासातो तिउट्ठति, एगे एव माहंसु ॥३॥ एगे पुण एवमाहमु ता पुरस्थि मिल्लातो लोगंतातो पातो सूरिए पुढविपातो उतिद्वइ, सेणं इमं लोगं तिरियं करतिरता,
पच्चथिमिल्लांस लोगंसि सायं सूरिए पुढविकायंसि विडंसति, एगे एवमाहंसु 1 में प्रकाश करके पश्चिम के चरिमांत में संध्या समय आकाश में प्रवेशकर अधो लोक में जाता है. वहां वह #प्रकाश करता है. फीर पृथ्वी में से नीकलकर लोक के अंत में प्रभात में सूर्य आकाश में रहता है. इस
नासरे मत से यह लोक वर्तुलाकारवाला है एसा होता है. इस से सूर्य दिन को उपर के भाम में और रात्रिको नीने के भाग में प्रकाश करता है. जहां प्रकाशता है वहां दिन और जहां अदृश्य होता है वही रात्रि. यह मत
राण प्रसिद्ध व विदेशीय प्रजाका है. उक्त तीनों मत्त वाले में विशेषता है सो बताते हैं. पहिला का *कथन है कि यह सूर्य का विमान नहीं है, डेवता रूप मूर्य भी नहीं है परंतु किरणोंके संघातरूप गोलाकार
है. लोकोंके अनुभव से प्रतिदिन पूर्वदिशा के आकाश में उत्पन्न हो सर्व स्थान प्रकाश करता है. दूसरे
48 सप्तदश चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग
दूसरा पाहुडे का पहिला अंतर पाहुडा
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