Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुपिदक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पनी
ता कहते मंडलाता मंडलं संक्रममाणे २ मृरिए चारं चरति आहितेति वदेजा ? तत्थ खलु इमातो दो पडिवत्तीओपण्णत्तानो तंजहा तत्थ एगे एव माहं ता मंडलातो मंडलं संकममाण २ सरिए भेदधाते संकमति आहितेति वदेजा, एगे एवं मासु ॥ १॥ एगे पुण एव माहमु ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ मूरिए कण्ण कला निवति आहितेति वदेजा एगे एव माहंमु ॥ २ ॥ तत्थण जेते एव माहंमु ता मलाल मंडलं संकममाणे २ सरिए भेदघाती सकमति तेसिणं अयं दासो जेणंतरेणं मडलानो मडलं संकममाण सरिए भदघाओ संकमति, एव तियं चणं अद्धं पुरतोण गच्छति, पुरओ आगच्छमाणे मंडल कालं परिहावति, तेसिणं
अब दूसरा अंतर पाहुडा कहते हैं. अहं भगवन्! एक मंडल मे द पर मंडलपर सूर्य किस प्रकार चलना में है ? अहो शिष्य ? इस विषय में दो पडियत्तियों कही हैं. कितनेक ऐसा कहते हैक सूर्य मंडलपर चलता हुवा भेद घात करता हुवा चले २ किननेक अन्यतीर्थ ऐसा करते हैं कि मंडल २ पर। चलना हुवा सूर्य कर्णकला की हानि करता हुवा चल. उक्त दोनों में से जो ऐसा कहने कि मंडल २ पर मंकपता हुवा भेद घात कर चले उन को यह दोष है. अंतर मंडल २पर रहकर जो सूर्य भेद घात से चलता है वह लोक में अर्ध मंडल पूरता हुवा जावे और अर्थ मंडल पूरना हुवा आवे. और जो अंतर मंडल २ पर पूरता हुवा कर्ण कला की हानि करता हुआ चले ए जो अन्यतीथि कहते
• प्रकाशक रम्जाबहादुर लाला मुवकि सहायजी कालप्रसाद जी.
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