Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तयाणं उत्तरद्धवि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति, जयाणं उत्तरडे वारसमहत्ताणतरे दिवसे भवति तयाणं दाहिणहंवि बारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवति, तयाणं जंबूद्दीवेही मंदरस्म अयस्त पुरथिमे पञ्चत्थिमेणं न मया पण्णरम मुहुत्ते दिवसे भवति,नो सया पण्णरस मुहत्ता राई भवति अणवट्ठियाणं तत्थ रातिदिया पण्णत्ता समणाउसो ! एगे एवं माहेम् ॥ २ ॥ एगे पुण एव माहसु-ता जयाणं जंबूद्दीवेदीवे दाहिड्डे अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति तयागं उत्तरडे वालम महुन गई भवति; जयाणं उत्तरड्डे
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दिन होने तत्र दक्षिण में भी मनाह मुहू नितर दिन होने जा दक्षिण में सल, मुनितर दिन होवे तव उत्तरार्ध में भी पाल मुतिर दिन होव और जब उतरार्ध में मोलद मुहूर्गनंतर दिन हवे ता दक्षिण में भी मोलह भनितर दिन होवे. जब दक्षिणार्ध पनाह मुहूर्वातिर दिन हवे तव उत्तरार्ध में पनाह मुहू:तर दिन और जब उत्तरार्ध में पनरह मुहूर्ना-1, नंर दिन होवे नर दक्षिण में भी पनाह मानिंतर दिन. होवे, जब दक्षिण में चउदह मुहर्नानंतर दिन हावे। तब उत्तरार्ध में भी च उदह मुहूनिंतर दिन और जब उत्तरार्ध में चउदह मुहूर्नानंतर दिन तर दक्षिणार्ध में चउदह मुहूर्नानंतर दिन, जब दक्षिणार्ध में तरह मुहूतिर दिन होवे तर उत्तरार्ध में तेरह मुहूर्नानंतर दिन।
आठवा पाहुडा 488
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