Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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का अनुबादक शालारसकरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति तयाणं दाहिणढ़े दुवालस मुहुत्ता राई भवति ता जयाणं दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहत्ता णतेर दिवसे तयाणं उत्तरड्ढे दुवालस मुहुत्ता राई भवति, जयाणं उत्तरड्ढे अट्ठारस महत्ताणतरे दिवसे भवति, तयाणं दाहिणड्ड दुबालस मुहुत्ता राई भवाति एवं सत्तरस मुहुत्ते दिवसे,सत्तरसमुहुत्ताणंतरे,सोलसमुहुत्ते,सोलस मुहुत्ताणंतरे,पण्णरसमहुत्ते,पण्णरसमुहुत्ताणंतरे, चउद्दसमुहुत्ते, चउद्दसमुत्ताणंतरे तेरस र जब उत्तरार्ध तेरह मुहूर्नानंतर दिन तव दक्षिणार्ध में भी तेरह महतर दि; जब दक्षिणार्ध में वारह मुहूर्नानंतर दिन तव उत्तरार्ध में भी बारह महतर दिन और जव उत्तरार्ध में शरद महूर्नानंतर दिन तब दक्षिणार्ध में भी बारह मुहूर्तालर दिन हाय. इस समय जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पूर्व पश्चिम में पनाह मुहुर्तानंतर दिन व पन्नाह मुहूर्नानंतर रात्र होती है. यहां रात्रि दिन अवस्थित कहे हैं ३ कित-13 नेक ऐसा कहते हैं कि जब जम्बूद्वीप के दक्षिणा में अठारह महू का दिन होता है तब उत्तरार्ध में चारह मुहून की रात्रि होती है और जब उत्तरार्ध में अठारह मुहूर्त का दिन होता है नव दक्षिणार्ध में बारह मुहूर्त की रायि होती है. जब दक्षिणा में अठारह गहन में कम दिन होता है तब उत्तरार्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है और जर उत्तरार्ध में अठारह मुहूर्त में कम दिन होता है तब दक्षिणार्ध में बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. एमे दी सतरह मुहुर्न, सतरह मुहूर्त में कम का दिन, सोलह मुहुर्त, सोलह ।
.प्रकाशक-जावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वाला रमादर्ज .
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