Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मुहुरो, तरसमुहत्ताणतरे बारसमहरे। बारसमुहुत्ताणतरे ता जयाणं दाहिण वारसमहत्ते दिवसे भवति तयाणं उत्तरढ़े बारस महत्ता राइ भवति, जयागं उत्तरद्ध वारस मुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति, तयाणं जंबद्दीवेदीवे मंदरस्त पवयस्स पुरथिम पच्चत्थिमेणं णेवत्थि पण्णरस महत्ते दिवसे वत्थि पण्णरस मुहत्ता राई भवति वोछिण्णाणं तत्थ रातिदियाणं पण्णत्ता समकाउसो ! एगे एव माहंमु ॥३॥ १ ॥ वयं पुण एवं वयामो
ता जंबूद्दीवेदीव सृरिया उदीण मणि मुबगच्छति पाईणं दाहिण आगच्छति पाईण E मुहूर्त में कुछ कम दिन, पन्नाह मुहूर्त, पन्नर ह महूर्त में कुछ ६ म दिन, उदह मुहूर्त, चउदह मुहूर्त में कुछ
कम दिन, तेरह मुहुर्न तेरह मुहूर्त में कुछ कम दिन, और रात्रि सर्व स्थान वारद मुहूर्त की जानना. जब
दक्षिणार्ध में बारह महुर्त का दिन होता है तब उत्तरार्ध में बारह महून की गति होनी है और जब उत्तहैरार्ध में वारह मुहूर्त की रात्रि होती है. तब दक्षिणार्ध में वारह मुहूर्न का दिन होता है. जब दक्षिणायन
वारह मुहूर्त में कप दिन होता है ता उत्तरार्थ में बारह महून की रात्रि होती है और जब है उत्तरार्ध में बारह महतं कुछ कम दिन होता है तर दक्षिण में बारह महून की रात्रि
होती है. उस समय जम्बद्वीप के पूर्व पश्चिा में पन्नर महत का पूर्ण दिन नहीं होता है वैसे ही पनरह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है. क्यों कि वहां रात्रि दिन का व्यवच्छेद कहा है ॥ ॥ अहो शिष्य ! इस कथन को मैं इस प्रकार कहता हूं कि इस जम्बूद्वीप में सर्य उत्तर पूर्व-ईशान कौन में उदय पाते हैं और पूर्व दक्षिण अनि कौन में अस्त होते हैं भरतक्षेत्र
be-BE HEREL-28048
आठवा पाडा 42
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