Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बनुवादक-कालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
इमाओ चत्वारि पडिवत्तीओ पण्णनाओ तंजहा तत्थ एगे एवमाहंसु ता छ छ जोयण सहस्साति सूरिए एगमेगेणं महत्तेणं गच्छति, आहितात वंदना, एग स्त्रमा ॥ १ ॥ एगे पुण एवमाहनु ता पच २ जोग । १२सारिस ग नुहोस गच्छति आहितति वदेजा, एगे एवमासु ॥ २ ॥ ९गण एवमाहंसु ता चत्तारि २ जोयण सहस्साति सरिए एगमगणं महतगं गच्छति आहितेति बदजा एगे एवमासु ॥ ३ ॥एगेपुण एवमा नु ता छ। पंचवि चत्तारिवि जोयण सहस्साई ऐमा कहते हैं के एक २ मुहू में सूर्य पांव २ हजार ये जा चलता है. ३ किनक ऐमा कहते हैं कि
२मुहर्न में मर्य चार हार योजन चलता है ४ और कितनेक ऐसा कहते कि-एक २ सूर्य छ हजार, पांव हज र भौर चार हजार शेजा भी चलता है. इस में जो ऐमा कहते हैं कि सूर्य ए: २ मुहूर्त में छ २ हजार गोजन चलना है. उनका कथन इस हेतु स है कि जय सूर्य मब से आभ्यंतर मंडलपर रहकर चा चलता है तब उत्कृष्ट अहमहू का दि व जघन्य रहन ६ रात्रि होती है. इस समय एक लाख आठ हजार योजन का यावत् क्षत्र कहा है एक मुहूर्त मेंउ २ हजार योजन चलने से १८ मुहूर्त में एक लाख आठ हजार योजन चले और सूर्य सब से बाहिर के मंडलपर चलता है तब उस्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि और बारह मुहूर्त का दिन होता है. इस समय में साप क्षेत्र
भवहार का मुख्दवमहायजी उदारा प्रमादजी.
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