Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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1. चार घरति, ता जयाणं अब्भंतरं तचं मंडलं जाव चारं चरति तयाणं पच
जोयण सहस्साति दोणिय बावण्णेजोयणसते पंचसट्रिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, तयाणं इहगयरस मणुसस्स सतालीसाए जोयण सहस्सेहिं.छण
सप्तदश चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र पडू पाज
१७२६७८०३६ की राशि को ३६०० से भाग देने से ४७१७१ योजन पूर्ण आवे और ३४९६ शेष रहे. उसे साठ से गुणाकार करने से २०९७६. की साठिया राशि हुइ, इसे १० का भाग देने से ५७ भाग होबे, शव ११४० साठिया की राशि हुइ. इस के ६१ ये भाग करने से ६१ से गुणाकार करना जिस से ६९८४० होवे, उसे ३६६० का भाग देने से १९५ पूर्ण आवे. इसी कारन से ४७१७९१ योजन साठिये ५७ भाग और साठिये एक के एकसठिये १९ भाग इतना दूरमे भरतक्षेत्र के मनुष्य को सूर्य देखने मे आवे. यह निश्चय नय से कहा. परंतु व्यवहार नय से ४७१७९ योजन साठीया १ भाग और ६१ या २३ भाग. प्रथम मंडल ४७२६३ : योजन दूर से मूर्य चक्षदृष्टि में आवे और अंतिम १८४वे मांडले पर ३१८३१॥ योजन दूर से दृष्टिगोचर आवे. इसे प्रथम मंडल के योजन में से बाद करे तो शेप १५४३१ रहे. १८३ अहोरात्रि में इतना भेद होने से १८३ से भाग देना. जिस से ८४ योजन साठिये १९ भाग और एक साठीये के एक सठीये भाग करे उस में से ३८ भाग प्रत्येक मंडलपर कम दृष्टिगोचर आवे. पहिले मंटलपर ४७२६३ १. योजन दर से दृष्टि में आता है दसरे मंडल TV
488+ दूसरा पाहुडे का तीसरा अंतर पाहुडा-2036
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