Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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प्ति सूत्र पठ उपाङ्ग 410
भम्भंतर मंडल अधकार सई तेतं इमाएवि तापखेत संठितिक्ति यन्वं. बाहिरं मंडले आयामो सम्वत्थ ॥ तयाणं किं संठिया अंधकार संठिई आहितेति बदेजा ता उहीमुह कलब्या पुप्फसंठिया अंधकार संठि आहितेति बवेजा अंतोसंकुडा बाहिं विश्छडा तचेव जाव सम्वन्भतरिया वाहा, सबबाहिरिया चेव वाहा तीसेणं सम्वन्भंतरिया वाहा मंदर पश्यतेणं व जोयण सहस्सातिं चत्तारिय छयासीते जोयणसते नवदस भागे, एवं जं १माणं अम्भंतरं मंडलं ठिइए सुरिए ताव
खत्तं संठिइ तचेव यचं जाव आयामो तयाणं उत्तम उक्कास अट्ठारस मुहुत्ता राई समुद्र में प्रेमठ हजार दोसो पैतालीम योजन और एक योजन के दश भाग में के ६ भाग ६३२४५+ है. इप्स की परिधि जम्बूद्वीप की परिधि स दुगुनी कर दश का भाग देवे जितने आवे उतनी परिधि. उस परिधि की लम्बाइ ३३३३३ है. अब अंधकार के संस्थान का प्रमाण कहते हैं. जब सूर्य सब के बाहिर के मंटल पर रहता है तब रात्रि में अंधकार का संस्थान किस प्रकार रहता है ? उत्तर-ऊर्च मुखकलम्बुक पुष्प के संस्थान से रहता है. वह अंदर से संकुडा वाहिर से चौडा यावत् सब के बाभ्यंतर के पाहा सब से यह की पाहा. उसमें सब से आभ्यंतर की वाहां मेरु पर्वत समीप पात्तर हजार चारभो चालीस ओर एक योजना के दश के नव भाग ७२४४० योजन है. उस समय अठारह मुहूर्त की।
ge चौथा पहुडा Aghante
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