Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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चास मनि श्री अमोलक ऋषिनी
तेतिसे जोषणसय एगती भामेजोयणस्स आयामेणं आहितेति,बदेजा तयाणं उत्तम कट्टपत्ते उक्कोसिया अट्टारस मुहुत्ता दिवसा भवंति, जहगिया दुवालस्स मुहुत्ता राई भवंति ॥ ४ ॥ ता जयाणं सरिए सव्व वाहिरं मंडलं उपसंकमित्ता चारं चरति, तयाणं उद्धमुह कलंबुया पुष्फ सेठिया ताव खत्तं संठिति अंतोतकूडायाहि विच्छडा जाव सबभतरियाचेववाहा सन्च वाहिरिया चेव बाहा।तितेतवभतरिया बाहा मंदर पन्वयतेणं छजोयण
सहस्साति तिण्णिय चउविसे जोयणसते छच्च दसभागे जोयणस्स एवं जं पमाण, होवे. अब अंधकार की लम्बाइ बताते हैं. प्रभ-यह अंधकार कितनी लम्बाइ चौडाइ में होता है ? उत्तर-७८३३३२ योजन का होता है. उस समय अठारह मुर्त का दिन ब बारह मुहूर्त की रात्रि होती है ॥ ४ ॥ जब सूर्य सब से बाहिर के मंडल पर चलता है तब ताप क्षेत्र का संस्थान कलम्बु पुष्प का होता है. वह अंदर से संकोचन व बाहिर स चौरा यावत् मय से भाभ्यन्तर की बांस सब से हिर की वांहा. उस में से सब से आभ्यन्तर की बांहा मेरु पर्वत की पाम १३२४. यों जो प्रमाण आभ्यंतर मंडलपर अंधकार का कहा वह सब यहां कहना. अर्थात् मेंरूपवंत की परिधि को दुगने करके दश भान देवे उस में जिनमे भावे उसन: बेर की पास की अंधकार की बाहा. और बाहिर की लपण
• पकायाक राजाबहादुर लाला मुखवाडायनी ज्वालपसादजी.
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