Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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॥ षष्ठ प्रभृतम् ॥ ताकहते ओजमंठिई आहितेति वदेजा ? तत्य खलु इमातो पण्णवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, संजहा-तक एगे एवं माहंमुअणुसमयमेवमरियरस ओया अण्णाओ उप्प. जइ अण्णवेत्ता हितति वदेजा, एगे एवमाहंमु ॥१॥ एगेपुण अणुमुहुत्तमेव सूरियस्स उया अण्णुप्पबइ,अण्णा वेति आहितति वजा ॥ एवं एएणं अभिलावेणं ता अणुरातिदिय एवमेव मुरिया ॥ ३ ॥अणुपक्वमेव सूरिया ॥ ४ ॥ ता अणुमासमेव सुरिया ॥ ५ ॥ ता अणुउरमेव सूरिया ॥ ६॥ सा अणुअयणमेव मुरिया ॥ ७ ॥ ता अणुसंवग्छर मेव सूरिया ॥ ८ ॥ ता अणुजुगमेव मूरिया ॥ १ ॥ अब छठे पाहुदे में प्रकार का कपन कहते हैं. भहो भगवन् ! पर्व काल में मयं एकरूर अवस्थापने अयवा। बण्यापने प्रकाशना ? अहो गौतम ! हम में अन्यतीर्थी की पहाण रूप पदीस परिवृत्तियों कही : किसनेक ऐसा करने में कि क्षण २ में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है और अन्य प्रकाशता. २ कितनेक एमा कहते हैं कि प्रत्यक मुड़ में सूर्य का प्रकार अन्योता और अन्य प्रकाशा कितनक ऐसा करते हैं कि प्रत्येक रात्रि में सर्य का प्रकाश अन्य उत्पन होता है और अन्य प्रकाशमा 1 ४ जिसमेक ऐसा कावे किसूर्य का प्रकार प्रत्येक पक्ष मम्म उत्पन होता है और -
विनीपानमसादी
कामता
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