Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
मंडलं उवसंकमित्ता चार चरति, ता जयाणं सरिए बाहिरं जाव चार चरति, तयाणं सा मंडलवया अडयालीसं एगट्ठी भ गे जोयणस्स बाहल्लेणं, एगं जोयण सयसहस्सं छच्च अडयाले जोयण वावणंच एगट्ठी भागे जायणस्स आयामविक्खंभेणं, तिन्निय जोयण सय सहस्साई अट्ठारस सहरसाइं दोणिय अउणासी जयणसए परिक्खवेणं तयाणं अट्ठारस मुहु ता र ई चउहि ऊणा, दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति, चउहिं
अहिए ॥ एवं खलु एतेण उवाएणं से पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ, तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं जाव संकममाणे २ पंच २ जोयणाई पणतीसंच एगट्ठी भागे होता है. वहां से प्रवेश करता हुवा सूर्य दूसरी अहोरात्र में वाहिर के तीसरे मंडल पर रहकर चाल चलता है. जब सूर्य बाहिर के तीसरे मंडल पर रहकर चाल चलता है तब वह मंडल एक योजन के.
एकसाठय अडतालीस भाग का जाडा है, एक लाख छ सो अडतालीम योजन व एकसठिय बाचन भाग E११००६४८ योजन का लम्बा चौडा है, क्यों कि दूसरे मंडल की लम्बाई में से ५ योजन कम
करते इतने शेष रहे. और परिधि तीन लाख अठारह हजार दो सो गुन्यासी ३१८२७९ योजन की है। दसरे मंडल की परिधि में से इतनी कम करे, यहां पर एकस दिये चार भाग कम अदारद मुहूर्त की रादि।
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी.
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