Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सप्तदश-चंद्र प्रज्ञाप्त सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग 420
जोयणस्स एगमेगेणं रातिदिएणं विकंपइत्ता चारं चरति आहितेति वदेजा एगे एव मासु ॥ ४ ॥ एमेपुण एवमाहंसु ता अहुटाई जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं जाव वदेजा एगे एवमाहंतु ॥ ५ ॥ एगेपुण एवमाहंसु चत्तारि चउभागूणाई जोयणाई जाव आहितति वदेज्जा एगे एवमासु ॥ ६ ॥ एगेपुण एवमासु चत्तारि जोयणाई अद्ध पावणंच तेत्तीसं सयभागे जोयणस्स एगमेगेणं रातिदिएणं जाव आहितेति वदेजा, एगे एवमाहंस ॥ ७ ॥ वयं पुण एवं वदामो ता दोदो जोयणाई अडयालीसंच एग
सट्ठी भागे जोयणस्स एगमगेणं मंडले, एगमेगेणं रातिदिएणं विकंपावतित्ता सृरिए भी कहते हैं कि तीन योजन व एक योजन के १.३३ भाग करे वैसे ४५॥ भाग (३) जितना क्षेत्र एक अहोरात्रि में उल्लंघकर दूसरे मंडलपर जाकर चाल चलता है, ६ कितनेक ऐमा कहते हैं चार योजन में चौथा भाग कम (३॥) योजन क्षेत्र उल्लंघकर सूर्य चाल चलता है, . कितनेक ऐसा कहते हैं, कि चार योजन व एक के १८३ भाग में से ५१॥ भाग (४ ) क्षेत्र एक रात्रिदिन में उल्लं
घकर सूर्य चाल चलता है. भावंत कहते हैं कि इस कथनको मैं इसप्रकार कहता हूं कि दो योजन व एक सठिये '} अडतालीस भाग (२ ) इतना क्षेत्र एक २ मंडल से एक रात्रि दिन में उल्लंघकर मूर्य चलता है ॥१॥
488- पहिला पाहुड का छठा अंतर पाहुडा 4
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