Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अनुवादक-चालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
भाहितेति वदेजा ? तत्थ खलु इमाओ सत्त पडिवत्तीओ पण्णताओ तंजहा तत्थेगे एव माहंमु ता दो जोयणाई अद्ध बयालीसंच तेत्तीसं सतभागे. जोयणस्स एगमेगेणं रातिदिएणं विकंपइ २त्ता मूरिए चार चरति,आहितेति वदेजा,एगे एव माहंमु॥१॥एगे पुण एवं माहेसु ता अड्डाइजाइ जोयणाई,एगमेगणं रातिदिएणं विकंपइ २ता सूरिए चारं चरति आहि तेति वदेज्जा, एगे एक मासु ॥ २ ॥ एगे पुण एव माहेसु तिपिणतिभागूणाई जोयणाई एगमेगेणं रातिदिएणं विकंपइ २त्ता जाव चारं चरंति आहितेति वदेज्जा,एगे एव माहंसु
॥ ३ ॥ एगेपुण एवमासु, ता सिण्णि जोयणाई अडसीयालीसंच तेत्तीसंसचभागे दिन में कितना क्षेत्र विकंपन कर सूर्य चलता है अर्थात् अपने मंडल से कितना क्षेत्र जाता है ? उत्तरइस विषय में अन्यतीथि की प्ररूपणा रूपसात पडिचियों कही है. तद्यथा-किसनेक ऐसा कहते हैं कि योजन व एक योजन के एक सो ध्यासी भाग में से साटी एकतालीम भाग [२ ] क्षेत्र एक रात्रि दिन में अपने मंडल से अन्य मंडल पर उल्लंघकर जाता है. २कितनेक ऐसा कहते कि एक रात्रि दिन में 4 अढाइ (२॥) योजन क्षेत्र उलंधकर एक मंडल से दूसरे मंडल पर जाकर चाल चलता है ३ कितनेक
कहते हैं कि तीन योजन में तीसरा भाग कम क्षेत्र उलंघकर मूर्य चाल चलता है,४ कितनेक ऐमा
• प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालापसादजी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org