Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र-पृष उपाङ्ग
सेपविसमाणे सरिए दोच्चसि अहोरसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जयाणं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, तयाणं पंच जोयणाए पणतीसंच एगट्ठी भागे जोयणस्स दोहिं रातिदिएणं विकंपावित्ता चारं चरति तयाणं अट्ठारस मुहुत्ता राई भवति चउहिं एगट्ठी भाग महत्तेहिं ऊणे, दुवालस मुहत्ते दिवसे भवति, चउहिं एगीभाग अहिते ॥ एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सरिए तयाणंतराओ तयाणंतर मंडलातो मंडलं सकम माणे २ दो २ जायणाई अडयालसिंच एगसेट्ठी भाग जोयणस्स, एगमेग मंडले एगमेगे रातिदिएणं विकंपमाणे २ सयभंतरं मडलं उवसंकमित्ता चारं चरति ॥ जयाणं सूरिए सव्व रहकर चाल चलता है.जब बाहिर से तीसो मंडल पर रह कर चाल चलता है तब। योजन भाग जितना क्षेत्र दो रात्रि दिन में अवगाहकर चाल चलता है. उस समय एकसठिये चार भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि ब चार भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होता है. इसी तरह प्रवेश करता हुवा सूर्य एक पीछे एक मंडलंपर रहता हुवा २० योजन क्षेत्र एक २ रात्रिदिन में उल्लघंता हुवा सब से आभ्यंतर पहिले मंडलंपर रहकर चाल चलता है. जब सूर्य सब से बाहिर के मंडलंपर से सब से भाभ्यंतर मंडलंपर रहकर चाल चलता है तब सब से बाहिर का मंडल छोडकर १८३ रात्रिदिन में ५१० योजन क्षेत्र उल्लंघकर
48 पहिला पाहुड का छठा अंतर पाहुँडा 428
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