Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4 सप्तदश चंद्रप्रज्ञति सूत्र- षष्ठ उपाङ्ग 48
अर्थ
चारंचरंति, तयाणं उत्तम कट्टुपत्ते जाब दिवसे भवति जहणिया दुबालस मुहुतारती भवति, एसणं दो छम्मासे, एसणं दोच्चछम्मासस्स पज्जबसणे, एसणं आईच संवच्छरान्तस्स पज्ञत्रसाणे ॥ इति चंदरन्नत्तिस्म पढमस्त चउत्थं पाहुडं सम्मत्तं ॥ १॥ ४ ॥ ताइदवस मुद्दे उग्गाहित्ता सूरिए चारं चरंति आहितेति वदेज्ञा ? तत्थखलु
इमाओ पंचपडिवत्तीओ तंजहा-तत्येंगे एवमहंस- एग जोयण सहस्से एगंच तेत्तीसं मुहूर्त का दिन व बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. यह दूसरा छ माम हुवा व दूसरा छ मास का पर्यव मान हुवा यह आदित्य संवत्सर आदित्य संवत्सर का पर्यवसान हुवा यह पहिला पाहुडे का चौथा अंतर पाहुडा संपूर्ण हुवा ॥ १ ॥ ४ ॥
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अब द्वीप समुद्र में सूर्य कितनी दूर चलते हैं सो कहते हैं— अहो भगवन् ! क्षेत्र व समुद्र का कितना क्षेत्र अवगाहकर चाल चलते हैं ? भगवान महावीर
एमा
यहां अन्यतीर्थ की तरुण रूप पांच प्रकार की पंडित कही है. कितने एना कहते हैं कि एक हजार एक मोती ११३३ योजन द्वीप या समुद्र भवर सूर्य चाल चलते हैं, २ कितने द्वीप या समुद्र अवगाहकर चाल चलते हैं, कितनेक ऐसा द्वीप या समुद्र अवगाहकर सूर्य चाल चलते हैं ४ कित
कहते हैं कि एक हजार एक सो चौंतीस योजन कहते हैं कि एक हजार एक सो पेनीस योजन
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सूर्य द्वीप का कितना स्वामी कहते हैं कि
4- पहिला पाहुडे
का पांचवा अंतर पाहुडा
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