Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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14.दीके जाब परिक्खेवेर्ण ता जयाणं एते दवे
चार चरंति, तयाणं णवणवति जोयणसहस्स - अंतरं कटु चारं मृरिया चरंति, तयाणं उत्तम भवति जहणिया दुवालप्त मुहुत्ताराई भवति अयमाणे पढमंसि अहोरत्तसि अन्भंतराणंतरं जयाणं दुबे सरिया अब्भराणंतरं जाव चारं
सहस्साई छच्चपण्णयाले जोयणसए पण्णतसिंर Fमंडलपर रह कर चाल चलते हैं. तब निन्यानवे हजार छसो चालीस...
कि एक लक्ष योजन के जम्बूद्वीप में दोनों सूर्य एकमो अस्सी योजना. को दुगुने करने से ३६० होवे. इतना एक लक्ष योजन में कमो करने से ९९६) दोनों सूर्य आभ्यंतर क पंडलपर उक्त अंतर मे चाल चलते हैं. उम सपय उ व बारह महून की रात्रि होती हैं ॥२॥फीर आभ्यंतर मंडल से नीकलते हुच दा: करते हुवे पहिली अहोरात्रि में दूसरे मांडलेपर चलते हैं. जब वे दोनों पूर्य अ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अोलक ऋपिनी
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