Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
ततीयं पाहुडं सम्मत्तं ॥ १॥ ३ ॥ ता केवइयं त एते दुवे भूरिया अण्णमण्णस्म अंतरं कटु चारंचरइ अहिते ति वएजा? तत्थ खल इमाओ छ पडीवत्तीओ पण्णताओतंजहा तत्थेग एवं माइंसु एग जोयण सहस्सं एगच ते सीम जायणसयं अपणमण्णम अंतरं कटु, मारया चारं चरंति आहितेति वएज्जा? एगेएवं मासु ॥ १ ॥ एगेपुण एवमासु ता एगं जोगणसहस्सं एकां चउत्तिसं जोयणसतं अण्णमण्णरस अतरं कटु नरिया चारं चरंति आहितेति वएज, एगे एवं माहंसु ॥ २ ॥ एगेपुण एवं मासु ता एगं जोयण सहस्सं, एगं च पन्नतीसजाय अण्णमण्णं अंतरंकटु सूरिया चरं चरति आहिते ति वएज्जा, एगेएवमाहंसु ॥ ३ ॥
. प्रकाशक-राजाबहादूर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
अंतर पाहुडा संपूर्ण हुवा ॥ १ ॥ ३ ॥
अब परस्पर सूर्य में अंतर रूप चौथा पाहुडा कहते हैं. प्रश्न-अहो भगवन ! इस जम्बूद्वीप के दोनों सूर्य परस्पर कितना अंतर रखकर चलते हैं? उत्तर-अहो शिष्य : इस में अन्य तीथि की प्ररूपणा
छ पत्तियों कही हैं. इनका अलग कथन का -१ कितनेक ऐसा कहते कि दोनों सूर्य परस्पर एक हजार एक का तेत्तीय १३३ यजल का अंतर रखकर चलते हैं, २ कितनेक ऐसा |00 कहते हैं कि एक हजार एक सा चौतीस ११३४ योजन के अंतर से चलते हैं ३. कितनेक ऐसा कहते हैं।
कि एक हजार एक सो पेंतीस ११३५ योजन के अंतर से चलते हैं, ४ कितनेक ऐसा कहते हैं कि एक
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