Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ताए उदीपदाहिणताए जीवाए मंडलं चउवीसमएणं छेत्ता दाहिणपञ्चस्थि मिलंसि चउभागमंडलंसि बाणउति सूरियमयाइं ॥ जाई सरिए परस्स चिण्णं पडिचरंति उत्तरपरात मिल्लुसि चउ बाग मंडलंसि एक्काणउति सा आई, जाई सरिए परस्सचेच चिण्या पडिचरंनि तत्थ अयं भारहे सारए ॥ ता निक्खममाणे खलु एते दुवे सूरिया अण्णमस्स चिण्णं पाडेचरंति पविसमाणे खलु ते दुवे सूरिया अण्णमष्णस्स चिणं पडिचरति॥तं सयमेगं चोयालं गाहा॥चंद पण्णत्तिस्स पढमस्त
सदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र-पृष उपाङ्ग
++ पहिला पाहडे का तीसरा अंतर
के चौथे भाग में ९२ वे मांडले से नीकलता हुवा पर क्षेत्र पश्चिम महा विदेह क्षेत्र में उद्योत करता हुधा सूर्य चले. उत्तर पूर्व के (ईशान कून) के चौथे भाग २१ वे मांडले से नीकलता हुवा सूर्य पर क्षेत्र सो पूर्व महा विदेश में उद्योत करता हुआ चले. यह भरत क्षेत्र का सूर्य कहा. इमी हेतु से प्रथम मांडले से नीक लते हुये दोनों क्षेत्र के मूर्य परस्पर के क्षेत्र उद्यन करे नहीं, परंतु पर क्षेत्र में उद्योत करते हुये चले.
उक्त दोनों सूर्य १.०४ मांडले में प्रवेश करते हुये परस्पर क्षेत्र में उद्योत करे परंतु अन्य के क्षेत्र में उद्योत ** करे नहीं. इस तरह भरत क्षेत्र का सूर्य व एरवत क्षत्र का सूर्य अन्य के क्षेत्र में परस्पर के क्षेत्र में चार दिशा व विदिशा से परिभ्राण करते हुये चलते हैं. इस की सतमगं चोतालं यह गाथा का अर्थ नहीं रसकते हैं. क्योंकि गाथा अपूर्ण है. शेष का व्यवच्छ : हुवा है. यह पहिला IDR 1
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