Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+8+सनदश चन्द्रप्राप्त पत्र षष्ठ उपाङ्ग 4
संठिइ उवसंकमित्ना चारं चरति, ता जयाणं सरिए सवभंतरं दाहिणं अद्धमंडलं संठिई उवसंकमित्ता चारं चरात, तताण उत्तम कट्टपत्ते उकोसए अट्रारम्महत्ते दिवसे भवति, जहाणिया दवालस महत्ता राई भवति ॥ एसणं दोच्चे छम्मासे, एसणं दोच्च छम्मा सस्स, पजवासणे॥ एसणं आइच संवच्छरे, एसणं आइच्चसंवच्छरस्स पजवासण॥२॥ ता कहं ते उत्तरा अहमंडलसंठि आहितेति वदेजा ? ता जयाणं सरिए सधभतरं उत्तर अद्धमंडलसंठिइं उवसंकमित्ता चारं चरति, तयाण उत्तम कट्टपत्ते
उकासए अट्ठारसमहत्ते दिवसे भवति, जहणिया दुवालस मुहत्ता राई भवति । मंडलपर सस्थित हवा एक मुहूर्त के एक सठियदो २ भाग की दिन रात्रि में हानि वृद्धि करता हुग यावत् सबसे आभ्यंतर मंडल के दक्षिणार्थ विभाग में संस्थित होकर उपक्रम कर चाल चलता जब मूर्य सब के आभ्यंतर मंडल पर दक्षिणार्थ विभाग में स्थित होकर उपक्रमकर चाल चलता हैं तब सबसे अधिक उत्कृष्ट अठारह महून का दिन व जघन्य बारह महून की रात्रि होती है. यह है दसरे छमास कहे और यह दूसरे छ मास का पर्यवसान कहा. यह आदित्य संवत्सर व भादित्य संवत्सर का पर्यवसान हुग. यह दक्षिणार्ध मंटल का कथन संपूर्ण दुवा. यह दक्षिण दिशा के सूर्य के अर्ध मंडल आदित्य संवत्सर का कथन हुवा ॥२॥ अब उत्तर दिशा के सूर्य का अर्थ मंडल के आदित्य संवत्सर की पुच्छा' ।
अर्थ
पहिला पाहुड का दूसरा अतर पाहुडा 48.
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