Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
पाना नं.
॥अथ षष्ठ उद्देश ॥
१ षष्ठ अशा प्रश्र्चम उवैश के साथ सम्जन्धप्रतिपाघ्न, प्रथम सूत्र प्रा अवतरा, प्रथमसूत्र और छाया । २ मे भिक्षु जे वस्त्र और जेड पात्र हे अलिग्रहधारी है, सो यह भावना नहीं होती डि द्वितीय वस्त्र डी यायना डुरंगा । वह भिक्षु खेषाशीय वस्त्र डी यायना डरे, भे वस्त्र मिले उसी प्रो धारा डरे, यावत् ਪੀਪਮ ऋतु जावे वस्त्र का परित्याग डर हेवे । अथवा-जे शाट धारा डरे, अथवा जयेत होभवे । इस प्रकार के मुनि श्री आत्मा लघुता - गुएा से युक्त हो भती है। उस भिक्षु डास प्रकार डा आयार तप ही है। लगवानने भे उहा है वह सर्वथा समुयित है, इस प्रकार वह भिक्षु सर्वा भावना डरे । 3 द्वितीय सूत्रा अवतरा, द्वितीय सूत्र और छाया । ४ भिस भिक्षु हो यह होता है डि- मैं अडेला हूँ, मेरा प्रो नहीं है, मैं सा नहीं हूँ। वह साधु अपने हो जडेला ही समझे । स प्रकार के साधु डी आत्मा लघुता गुएा से संपन्न होती है उस साधु डी यह भावना तथ ही है । भगवानने भे उहा हैं वह समुयित ही है, जेसी लावना वह साधु सर्वा रजे ।
५ तृतीय सूत्र प्रा अवतरा, तृतीय सूत्र और छाया । ६ साधु अथवा साध्वा आहार डरते समय आहार को मुँह घाहिने लागसे जाँये भाग डी ओर स्वाह लेते हुये नही ले भवे, उसी प्रकार जाँये से हाहिने डी जोर नहीं ते भवे । स प्रकार स्वाह डी लावना से रहित होडर आहार डरना तथ ही है । भगवानने भे उहा है वह सर्वथा समुचित ही है, जेसी भावना साधु प्रो सर्वा रनी चाहिये ।
७ यतुर्थ सूत्र हा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया । ८ भिस भिक्षु हो यह होता है - मैं स समय ग्लान हूँ, सिलिये हंस शरीर डो पूर्ववत् परियर्या डरने में असमर्थ हूँ । स मुनि ो याहिये डि आहार हो भिड अल्थ डरे,
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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