Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
१६ मुनि आहारो छोड पर उस हर्भसंथाराडे पर शयन उरे, अनुरूल प्रतिहूल सली परिषहोंने सहे ।
१७ नवमी गाथाडा अवता, गाथा और छाया । १८ उस शय्या पर उस मुनि मांसशोशितो डीडियां और गृध जाहि पक्षी जावें तो उनकी हिंसा न डरे और न क्षतस्थाना प्रभार्थन ही डरे ।
१८ दृशवीं गाथाडा अवतरा, गाथा और छाया ।
२० साधु यह विचार डरे डि थे प्राणी मेरे शरीरडी हिंसा डरते हैं रत्नत्रयी तो नहीं डरते । जेसा विचार डर वह उन्हें निवारित न पुरे । अपनी शय्यासे पुली हूर न भय और परीषहोपसर्गोडा सहन डरे ।
पाना नं.
२१ ग्यारहवीं गाथाडा अवतरा, गाथा और छाया । २२ जाह्याभ्यन्तर ग्रन्थसे रहित अपनी आत्माझे लावित डरते हुने मुनि अन्तिमस्वासोच्छ्वासपर्यन्त समाधियुक्त रहे ।
स प्रकार मुनिर्भ निश्शेष होने पर मोक्षगाभी होता है और यह दुर्भ अवशिष्ट रह भता है तो हेवसोङगाभी होता है । गीतार्थ संयमी इस छंगित भराडो सभ्य प्रारसे स्वीकृत डरता है ।
२३ जारहवीं गाथाडा अवता, गाथा और छाया । २४ यह छँगिएातभरएा३प धर्म भगवान् महावीरने उहा है, यह भरा लतपरिज्ञामरएासे भिन्न है । स भराडा
खलिलाषी मुनि शरीरडे आवश्य प्रार्य हो छोड र अन्य सभी प्रार्थो को छोडे ।
२५ तेरहवीं गाथाङा अवतर, गाथा और छाया ।
२६ वह मुनिर्वाहि हरितप्रायोंसे युक्त स्थानों पर नहीं जैठे, हरितायरहित स्थान पर शयन डरे, आहार छोडडर युपयाप सली परीषहलपसर्गो प्रो सहे ।
२७ यौहवीं गाथाडा अवतरा, गाथा और छाया । २८ न्द्रियोंडी शक्ति क्षीएा हो भने पर यहि ग्लानि अनुभव होने लगे तो मुनि साम्यभावो धारा उरे, वह भुनि पर्वतडे समान जयत और समाहितयित होवे । स प्रारा मुनि सर्वा अनिन्ध होता है ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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