Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 聯佛聯佛聯佛聯佛聯聯參部參事部部举事事争串串串串串串串串串串串串
पुढवीकाइए णं भंते! अक्कंते समाणे केरिसयं वेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ?
गोयमा! से जहाणामए-केइ पुरिसे बलवं जाव णिउणसिप्पोवगए एणं पुरिसं जुण्णं जराजज्जरियदेहं जाव दुब्बलं किलंतं जमलपाणिणा मुदाणंसि अभिहणिज्जा, से णं गोयमा! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमल पाणिणा मुदाणंसि अभिहए समाणे केरिसियं वेयणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरइ? अणिटुं समणाउसो! तस्स णं गोयमा! पुरिसस्स वेयणाहिंतो पुढविकाइए अक्कंते समाणे एतो अणिद्वतरियं चैव अकंततरियं चेव जाव अमणामतरियं चेव वेयणं पञ्चणुभवमाणे विहरइ।
भावार्थ - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र प्रयोग करने पर उन जीवों को किस तरह की वेदना होती है?
गौतमस्वामी द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया - हे गौतम! एक हृष्टपुष्ट युवक किसी जर्जरित शरीर वाले वृद्ध पुरुष के मस्तिष्क पर मुष्ठि का प्रहार करे तो उस वृद्ध पुरुष को वेदना होती है?
हां भगवन्! उसे महावेदना होती है उसी प्रकार पृथ्वीकाय जीवों को उससे भी अनिष्टतर वेदना का अनुभव होता है।
इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वीकाय सजीव है और शस्त्र आदि के प्रयोग से उसे वेदना होती है। पृथ्वीकायिक जीवों के आरंभ का निषेध
(१६) इत्थं सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिणाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा परिणाया भवंति।
कठिन शब्दार्थ - इत्थं - इस, सत्थं - शस्त्र का, समारंभमाणस्स - समारम्भ करने वाले पुरुष को, इच्चेए - इस प्रकार के, अपरिणाया - अपरिज्ञात-अनजान, असमारंभमाणस्सअसमारम्भ-आरम्भ नहीं करने वाले पुरुष को, परिण्णाया - ज्ञात।
भावार्थ - इस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारम्भ करने वाला पुरुष वास्तव में इन आरम्भों-हिंसा संबंधी प्रवृत्तियों के कटु परिणामों एवं जीवों की वेदना-से अपरिज्ञात
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