Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
आठवां अध्ययन - चौथा उद्देशक - उपधि की मर्यादा
२७१ 88888888888888888888888888888888888
अहं अज्झयणं चउत्थोदेसो
आठवें अध्ययन का चौथा उद्देशक -. आठवें अध्ययन के तीसरे उद्देशक में परीषहों को समभाव पूर्वक सहन करने का उपदेश दिया गया है। अब इस चौथे उद्देशक में साधु के लिए वस्त्र पात्र की मर्यादा का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि अनुकूल या प्रतिकूल कैसे भी परीषहों के उपस्थित होने पर साधु हंसते हुए प्राण त्याग कर दे किंतु संयम का त्याग नहीं करे। इस उद्देशक का प्रथम सूत्र इस प्रकार है
उपधि की मर्यादा
(४२१) - जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायचउत्थेहिं तस्स णं णो एवं भवइ "चउत्थं वत्थं जाइस्सामि" से अहेसणिजाई वत्थाई जाएजा, अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारेजा, णो धोएजा णो रएजा णो धोयरत्ताई वत्थाई धारेजा, अपलिउंचमाणे, गामंतरेसु, ओमचेलिए, एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं।
कठिन शब्दार्थ - तिहिं वत्थेहिं - तीन वस्त्रों से, पायचउत्थेहिं - चौथे पात्र से, परिपुसिए- युक्त, मर्यादा में स्थित, जाइस्सामि - याचना करूंगा, अहेसणिज्जाइं - यथा एषणीय - एषणा (मर्यादा) के अनुसार, जाइजा - याचना करे, अहापरिग्गहियाई - यथापरिगृहीत - जैसा वस्त्र ग्रहण किया है, धारिजा - धारण करे, धोइजा - धोए, रइज्जा - रंगे, धोयरत्ताई- धोए हुए तथा रंगे हुए, गामंतरेसु - अन्य ग्रामों में जाते समय, अपलिउंचमाणेनहीं छिपाते हुए, ओमचेलिए - अवमचेलक - परिमाण एवं मूल्य की अपेक्षा स्वल्प वस्त्र रखने वाला, सामग्गियं- सामग्री। ... भावार्थ - जो साधु तीन वस्त्र और चौथा एक जाति का पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है उसको ऐसा विचार नहीं होता कि “मैं चौथे वस्त्र की याचना करूंगा।" वह यथाएषणीय वस्त्रों की याचना करे और यथापरिगृहीत वस्त्रों को धारण करे। वह उन वस्त्रों को न तो धोए और न रंगे, न. धोए-रंगे हुए वस्त्रों को धारण करे। अन्य गांवों में जाते समय वह उन वस्त्रों को
.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org