Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 323
________________ २६८ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 部帶動鄉帶來密部部帶來非事部聯參部參事部部部聯參部部邮哪些事事聊聊邮部部 कठिन शब्दार्थ - अभिक्कमे - सम्मुख होना, पडिक्कमे - पीछे हटना, कायसाहारणट्ठाए - शरीर की समाधि - सुविधा के लिए, अचेयणे - अचेतन की तरह। भावार्थ - इस अनशन को स्वीकार करने वाला मुनि शरीर की सुविधा के लिए इंगित प्रदेश में अपनी शय्या से सामने या पीछे गमनागमन करे, अपने अंगों को सिकोडे और पसारे। अथवा उसमें शक्ति हो तो शरीर के इन व्यापारों को नहीं करता हुआ अचेतन की तरह निश्चेष्ट हो कर रहे। विवेचन - इंगित मरण करने वाला साधु नियमित प्रदेश में गमनागमन तथा शरीर के अंगों का संकोच विस्तार कर सकता है। ऐसा करने पर भी कोई दोष नहीं है किन्तु यह कोई नियम नहीं है कि उसे गमनागमनादि क्रियाएं करनी ही चाहिये किन्तु यदि उसकी शक्ति वैसी हो तो वह सूखे काष्ठ की तरह निश्चेष्ट - स्थित रह सकता है। . (४५२) . परिक्कमे परिकिलंते, अदुवा चिट्टे अहायए। ठाणेण परिकिलंते, णिसीइजा य अंतसो॥ कठिन शब्दार्थ - परिक्कमे - नियत प्रदेश में चले, परिकिलंतें - थक जाने पर, अहायए- सीधा हो कर लेट जाय, ठाणेण - खड़े होने से, अंतसो - अंत में, णिसीइजा - बैठ जाए। भावार्थ - बैठे-बैठे या लेटे-लेटे यदि साधु थक जाए तो नियत प्रदेश में चले या थक जाने पर बैठ जाए अथवा सीधा खड़ा हो जाए या सीधा लेट जाए। यदि खड़े होने में कष्ट होता हो तो अंत में बैठ जाए। (४५३) आसीणेऽणेलिसं मरणं, इंदियाणि समीरए। कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए॥ , कठिन शब्दार्थ - आसीणे - लीन, अणेलिसं : अनीदृश - अनन्य सदृश - अनुपम, समीरए - हटा दे, कोलावासं - घुन आदि से युक्त स्थान या पाट, समासज - मिलने पर छोड कर वितई - जीव रहित पाउरेसए - गवेषणा करे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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