Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 328
________________ उवहाणसुयं णाम णवमं अज्ायणं उपधान श्रुत नामक नववाँ अध्ययन पहले के आठ अध्ययनों में साध्वाचार विषयक जिन बातों का वर्णन किया गया है, स्वयं भगवान् महावीर स्वामी ने उनका आचरण किया था, यह इस नौवें अध्ययन में बताया जायगा। इन नौवे अध्ययन का नाम 'उपधान श्रुत' है। उपधान के दो भेद हैं - १. द्रव्य उपधान और २. भाव उपधान। शय्या आदि पर सुख से सोने के लिए सिर के नीचे (पास में) सहारे के लिए रखा जाने वाला साधन - तकिया, द्रव्य उपधान है। जबकि भाव उपधान का अर्थ तपस्या है। तप के द्वारा जीव को अनंत शांति, अनंत सुख एवं आनंद की अनुभूति होती है। इसलिए यह भाव उपधान है। प्रस्तुत अध्ययन में भाव उपधान का वर्णन है। उपधान के साथ श्रुत शब्द जुड़ा हुआ है जिसका अर्थ होता है - सुना हुआ। इसलिए 'उपधान श्रुत' अध्ययन का विशेष अर्थ हुआ - 'जिस अध्ययन में दीर्घ तपस्वी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तपोनिष्ठ रत्नत्रयी साधना रूप उपधान मय जीवन का उनके श्रीमुख से सुना हुआ वर्णन हो।' श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आचारांग सूत्र के पूर्व वर्णित आठ अध्ययनों में बताये गये विधानों का स्वयं आचरण करते हुए घोर परीषह उपसर्गों को सहन करते हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त किया था। मुनि भी उसी प्रकार परीषह उपसर्गों को सहन करे। इसी विषय को बताने के लिए इस नववें अध्ययन के प्रथम उद्देशक का आरंभ किया जाता है - . पठमो उद्देसओ-प्रथम उद्देशक अहासुयं वइस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय। संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीइत्था॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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