Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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नववां अध्ययन - तृतीय उद्देशक - लाढ देश में विचरण
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(५०६) णाओ संगामसीसे वा, पारए तत्थ से महावीरे। एवं पि तत्थ लाढेहिं, अलद्धपुव्वो वि एगया गामो॥
कठिन शब्दार्थ - णाओ - हाथी, संगामसीसे - संग्राम के अग्रभाग में, पारए - पार पा जाता है, अलद्ध पुव्वो - न मिलने पर। ____ भावार्थ - जैसे हाथी संग्राम के अग्र भाग में शत्रुओं का प्रहार सहन करता हुआ शत्रुसेना को पार कर जाता है उसी प्रकार उन भगवान् महावीर स्वामी ने लाढ देश में परीषहों को सहन करते हुए पार पाया था। कभी कभी तो लाढ देश में ठहरने को गांव में स्थान नहीं मिलने पर उनको अरण्य (जंगलादि में वृक्षादि के नीचे) में रहना पड़ा।
_ (५०७) ' उवसंकमंतमपडिण्णं, गामंतियंपि अप्पत्तं ।
पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु, एयाओ परं पलेहि ति॥ - कठिन शब्दार्थ - उवसंकमंतं - भिक्षा या निवास के लिए, अपडिण्णं - प्रतिज्ञा रहित, गामंतियं वि - ग्राम के निकट, अप्पत्तं - अप्राप्त होने पर, पडिणिक्खमित्तु - ग्राम से बाहर निकल कर, परं - दूर, पलेहि त्ति - चले जाओ। ... भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी नियत स्थान या आहार की प्रतिज्ञा नहीं करते थे किन्तु आवश्यकता वश निवास या आहार के लिए वे ग्राम की ओर जाते थे। वे ग्राम के निकट पहुंचते, न पहुँचते तब तक तो कुछ लोग गांव से निकल कर भगवान् को रोक लेते, उन पर डंडे आदि से प्रहार करते और कहते-'यहाँ से आगे कहीं दूर चले जाओ।'
(५०८) हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा, अदु कुंताइफलेणं। अदु लेलुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे कंदिसु॥ कठिन शब्दार्थ - हयपुवो - पहले मारा, दंडेण - डंडे से, मुडिणा - मुट्ठी से,
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