Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३२२
आचाराग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRR888888888888888888888888888888
(४६५) जंसिप्पेगे पवेयंति, सिसिरे मारुए पवायंते। तंसिप्पेगे अणगारा, हिमवाए णिवायमेसंति॥
कठिन शब्दार्थ - पवेयंति - कांपने लगते हैं, हिमवाए - हिमपात, मारुर - हवा, पवायंते - चलने पर, णिवायं - वायु रहित, एसंति - ढूंढते हैं।
भावार्थ - शिशिर ऋतु में ठण्डी हवा चलने पर कई पुरुष शीत से कांपने लगते हैं उस शिशिर ऋतु में हिमपात होने पर कुछ अनगार भी निर्वात - वायु रहित स्थान ढूंढते हैं।
(४६६) संघाडीओ पवेसिस्सामो, एहा य समादहमाणा। पिहिया वा सक्खामो, अइदुक्खं हिमगसंफासा।
कठिन शब्दार्थ - संघाडीओ - संघाटी - चादर, कम्बल आदि वस्त्रों में, पवेसिस्सामोप्रवेश करेंगे, घुस जाएंगे, समादहमाणा - जला कर, एहा - काष्ठादि, पिहिया - ढक कर, बंद कर, सक्खामो - सहन कर सकेंगे, अइदुक्खं - अत्यंत दुःखदायी, हिमगसंफासा - हिमजन्य शीत स्पर्श। ____ भावार्थ - कुछ साधु यह विचार करते कि कम्बल, चादर आदि वस्त्रों में घुस जाएंगे अथवा काष्ठादि जला कर किवाड़ों को बंद करके इस ठंड को सह सकेंगे क्योंकि हिमजन्य शीत स्पर्श अत्यंत दुःखदायी है, ऐसा वे सोचते थे।
(४६७) तंसि भगवं अपडिण्णे, अहे वियडे अहिसायए दविए। णिक्खम्म एगया राओ चाएइ भगवं समियाए।
कठिन शब्दार्थ - अहे वियडे - चारों तरफ की दीवारों से रहित केवल ऊपर से आच्छादित स्थान - कच्चे आंगन वाले. मंडप में। . भावार्थ - उस शिशिर ऋतु में भी भगवान् वायु रहित स्थान की खोज या वस्त्र पहनने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org