Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 310
________________ आठवां अध्ययन ॐ श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री कहते हैं। aaaaaa ३. खेडं (खेड - खेटक) - जिस आबादी के चारों ओर मिट्टी का परकोटा हो उसे खेड या खेड़ा कहते हैं। ४. कब्बडं (कब्बड - कर्बट) ५. मंडबं (मडम्ब ) ६. पट्टणं ( पत्तन) पाटण कहते हैं। छठा उद्देशक - इंगित मरण साधना ƒ¤áƒ¤áƒ¤áƒ¤áƒ¤áƒ რ- - Jain Education International २८५ थोड़ी आबादी वाला गांव कर्बट कहलाता है। जिस गांव से ढाई कोस की दूरी पर दूसरा गांव हो उसे मडम्ब व्यापार वाणिज्य का बड़ा स्थान जहाँ सब वस्तुएं मिलती हों उसे ७. दोणमुहं (द्रोणमुख) - समुद्र के किनारे की आबादी, जहाँ जाने के लिए जल और स्थल दोनों प्रकार के मार्ग हो वह द्रोणमुख ( बंदरगाह) कहलाता है। ८. आगरं (आकर ) - सोना चांदी आदि धातुओं के निकलने की खान को आकर कहते हैं । ६. आसमं (आश्रम) - तपस्वी संन्यासी आदि के ठहरने का स्थान आश्रम कहलाता है। जहाँ सार्थवाह अर्थात् बड़े-बड़े व्यापारी बाहर से आकर १०. सण्णिवेसं (सन्निवेश) उतरते हों उसे सन्निवेश कहते हैं। ११. णिगमं (निगम) - जहाँ अधिकतर व्यापार वाणिज्य करने वाले महाजनों की आबादी हो, उसे निगम कहते हैं। १२. रायहाणिं (राजधानी) - जहाँ राजा स्वयं रहता हो, वह राजधानी कहलाती है। (४३२) तं सच्चं सच्चवाई ओए तिण्णे, छिण्णकहंकहे, आईयट्ठे अणाईए चिच्चाण भिउरं कायं संविहुणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अस्सिं विस्सं भणयार भेरवमणुचिणे, तत्थावि तस्स कालपरियाए जाव अणुगामियं त्ति बेमि । ॥ अट्ठ अज्झयणं छट्ठोद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ - सच्चवाई - सत्यवादी, छिण्णकहंकहे - राग द्वेष आदि की कथा के छेदन करने वाला, आईयट्ठे - जीवादि पदार्थों का ज्ञाता, अणाईए - संसार सागर से पार होने वाला, भेउरं - नश्वर - विनाशशील, संविहुणिय - समभाव पूर्वक सहन करके, विस्संभणयाएविश्वास होने से, भेरवं - कठिन, अणुचिण्णे - आचरण करता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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