Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आठवां अध्ययन
सातवां उद्देशक - अचेल - कल्प ❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀e age age age of age age
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दंसमसगफासं अहियासित्तए, एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए हिरिपडिच्छायणं चऽहं णो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पड़ कडिबंधणं धारित्तए ।
कठिन शब्दार्थ - चाएमि समर्थ, अहियासित्तए - सहन करने के लिये, दंसमसगफासंडांस और मच्छर के स्पर्श को, हिरिपडिच्छायणे - हीप्रच्छादनं लज्जा के कारण गुह्य प्रदेश के आच्छादन रूप वस्त्र का परित्याग करने में, कडिबंधणं - कटिबंधन चौल-पट्टा - कमर पर बांधने का वस्त्र |
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भावार्थ - जो अभिग्रहधारी साधु अचेलकल्प में स्थित है। उस साधु को ऐसा विचार हो कि मैं तृण स्पर्श को सहन करने के लिए, शीत स्पर्श को सहन करने के लिए, उष्ण स्पर्श को सहन करने के लिए, डांस और मच्छर के स्पर्श को सहन करने के लिए इनमें से किसी एक को अथवा दूसरे किसी कष्ट को एवं नाना प्रकार के स्पर्शो ( कष्टों) को सहन करने में समर्थ हूँ •. किन्तु गुह्य अंग की लज्जा निवारण करने वाले वस्त्र के त्याग के कष्ट को सहन करने में समर्थ नहीं हूँ। ऐसी स्थिति में उस साधु को कटिबन्ध धारण करना कल्पता है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अचेल कल्प का वर्णन किया गया है। इस कल्प में साधक वस्त्र का सर्वथा त्याग कर देता है। यदि कोई साधक लज्जा जीतने में असमर्थ है तो उसके लिए आगमकार ने चोलपट्टा धारण करने की छूट दी है। इस कल्प को धारण करने वाला साधक शीतादि परीषों को समभाव से सहन करता हुए शरीर आसक्ति का त्याग करता है।
(४३४)
अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसगफासा फुसंति, एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेड़ अचेले लाघवियं आगममाणे जाव समभिजाणिया ।
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भावार्थ अथवा उस अचेल कल्प में पराक्रम करते हुए साधु को बार-बार तृण स्पर्श का कष्ट होता है, शीत का स्पर्श होता है, गर्मी का स्पर्श होता है, डांस और मच्छर काटते हैं। इस प्रकार वह एक या किसी दूसरे जातीय नाना प्रकार के स्पर्शो ( कष्टों ) को सहन करता है। अपने आपको लाघव (लघु) करता हुआ वह अचेल रहे। इस प्रकार उसे तप की सहज
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