Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१७८
. आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 888888888888888888888888888888888888888888888
कठिन शब्दार्थ - छए - छेक - कुशल, निपुण, सागारियं - मैथुन, सेवए - सेवन करता है। . भावार्थ - जो पुरुष कुशल - निपुण है वह मैथुन सेवन नहीं करता है।
दोहरी मूर्खता
(२६६) कट्ट एवं अवियाणओ बिइया मंदस्स बालया।
भावार्थ - जो अज्ञानी मैथुन सेवन करके गुरु आदि के पूछने पर उसे छिपाता है, अपलाप करता है, अनजान बनता है वह उस मूर्ख (मंद मति) की दूसरी अज्ञानता (मूर्खता) है।
कामभोगों का त्याग
. (२७०) लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविजा अणासेवणाए त्ति बेमि।
कठिन शब्दार्थ - लद्धा - लब्ध प्राप्त हुए, हुरत्था - उसके विपाक को, पडिलेहाए - पर्यालोचन कर, आगमित्ता - जान कर , आणविजा - आज्ञा (उपदेश) दे, अणासेवणाए - . अनासेवन - सेवन न करने की।
भावार्थ - लब्ध (प्राप्त हुए) कामभोगों का, उनके कटु परिणामों का पर्यालोचन कर, उन्हें दुःखदायी जान कर स्वयं उनका सेवन न करे और दूसरों को भी उनके अनासेवन-सेवन न करने की आज्ञा-उपदेश दे, ऐसा मैं कहता हूँ। - विवेचन - पुण्य पापादि के स्वरूप को जानने वाला विद्वान् पुरुष मैथुन का सेवन नहीं करता है। जो पासत्था आदि मोहनीय कर्म के उदय से मैथुन सेवन करता है और अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए शुरू के पूछने पर झूठ बोलता है एवं अपने कुकृत्य को छिपाता है वह मूर्ख यह दूसरी मूर्खता करता है क्योंकि मैथुन सेवन करना पहली मूर्खता है और झूठ बोलना दूसरी मूर्खता है। इस प्रकार यह दोहरा दोष सेवन है।
इस सूत्र का आशय यह है कि साधक को प्रमाद या अज्ञानतावश भूल हो जाने पर उसे सरलता पूर्वक स्वीकार कर लेना चाहिये। ऐसा करने से दोष की शुद्धि हो जाती है। यदि दोष को छिपाने का प्रयत्न किया जाता है तो वह दोष पर दोष दोहरा पाप करता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org