Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२३०
आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 8888888HREERRRRRBीक विरए, अणगारे, सव्वओ मुंडे, रीयंते, जे अचेले परिवुसिए संचिक्खइ ओमोयरियाए। ___ कठिन शब्दार्थ - अइअच्च - त्याग कर, ण महं - मेरी नहीं, अंसि - इस जिन प्रवचन में स्थित, जयमाणे - यत्न पूर्वक पालन करता हुआ, रीयंते - विचरता हुआ, अचेले - अचेल-अल्प वस्त्र से युक्त, परिवुसिए - पर्युषितः-अनियतवासी या अन्त प्रान्त आहार करता हुआ, ओमोयरियाए - ऊनोदरी आदि तप करता हुआ, संचिक्खइ - भली प्रकार से स्थित होता है।
भावार्थ - वह महामुनि सब प्रकार के संगों को छोड़ कर यह भावना करे कि “मेरा कोई नहीं है, मैं अकेला ही हूँ।" इस प्रकार वह जिन प्रवचन (तीर्थंकर के संघ) में स्थित, विषय भोगों - सावध प्रवृत्तियों से विरत, दशविध समाचारी में यतनाशील, द्रव्य और भाव से मुण्ड अनगार सब प्रकार से संयम में प्रवृत्त रहता हुआ अचेल - अल्पवस्त्र से युक्त (अथवा जिनकल्पी) रहता है। अंत प्रांत आहार करता हुआ (अनियतवासी) ऊनोदरी तप आदि करता हुआ सम्यक् प्रकार से संयम में स्थित होता है।
(३५४) से आकुठे वा, हए वा, लुंचिए वा, पलियं पकत्थ, अदुवा पकत्थ, अतहेहिं सद्दफासेहिं, इइ संखाए एगयरे अण्णयरे अभिण्णाय तितिक्खमाणे परिव्वए, जे य हिरी जे य अहिरीमाणा, चिच्चा सव्वं विसोत्तियं संफासे फासे समियदंसणे। ___कठिन शब्दार्थ - आकुट्टे - आक्रोशित हुआ, हए - दण्ड आदि से ताड़ित, लुंचिए - केश लुंचन करे, पलियं - पलित - पूर्वकृत अशुभ कार्यों का, पकत्थ - कथन करके निंदा करे, अतहेहिं - अयथार्थ, सद्दफासेहिं - वचनों से या कष्टों से पीड़ित करे, संखाए - विचार कर - जान कर, हिरी - मन को प्रसन्न करने वाले, अहिरीमाणा - अप्रिय लगने वाले, अभिण्णाय - जानकर, तितिक्खमाणे - सहन करता हुआ, विसोत्तियं- शंकाओं को, सांसारिक संबंधों को, समियदंसणे- सम्यग्दृष्टि साधु। . भावार्थ - उस मुनि को कोई आक्रोश वश गाली देता है, डंडे आदि से मारता-पीटता है अथवा केश उखाड़ता या खींचता है अथवा पूर्वकृत अशुभ कार्यों का कथन करके निंदा करता है अथवा घृणित या असभ्य शब्द प्रयोग करता है। झूठे शब्दों से तथा कष्टों से पीड़ित करता है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org