Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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__ छठा अध्ययन - तृतीय उद्देशक - द्रव्य और भाव लाघवता २३७ 要事事事非郵郵幣郵事非事事事非事事部部參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參
भावार्थ - जो सम्यक् प्रकार से संयम मार्ग में उपस्थित हुआ है और उत्तरोत्तर संयम स्थान से आत्मा को जोड़ता है अथवा उत्तरोत्तर गुणस्थानों में चढ़ता जाता है, ऐसे मुनि को अरति कैसे हो सकती है, कदापि नहीं हो सकती। वह मुनि तो जल बाधा से रहित द्वीप जैसा है अर्थात् असंदीन द्वीप, जल से सर्वथा रहित होने से डूबते हुए प्राणियों के लिए आश्रयभूत है उसी प्रकार मुनि भी द्वीप के समान अन्य जीवों का रक्षक है।
(३६६) एवं से धम्मे आयरियपदेसिए। कठिन शब्दार्थ - आयरियपदेसिए - आर्य प्रदेशितः - तीर्थंकर प्रणीत। भावार्थ - इसी प्रकार से वह तीर्थंकर प्ररूपित धर्म है। ___
(३६७) - ते अणवकंखमाणा, पाणे अणइवाएमाणा दइया मेहाविणो पंडिया।
कठिन शब्दार्थ - अणवकंखमाणा - भोगों को नहीं चाहते हुए, अणइवाएमाणा - हिंसा न करते हुए, दइया - लोकप्रिय, मेहाविणो - मेधावी, पंडिया - पंडित। _____ भावार्थ - वे मुनि भोगों की आकांक्षा नहीं करने वाले एवं प्राणियों की हिंसा नहीं करने वाले होने के कारण लोकप्रिय, मेधावी और पण्डित हैं।
___ (३६८) ___ एवं तेसिं भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दियापोए एवं ते सिस्सा दिया य - राओ य अणुपुव्वेण वाइय त्ति बेमि।
... ॥छठें अज्झयणं तइओईसो समत्तो॥
कठिन शब्दार्थ - अणुट्ठाणे - अनुत्थित - धर्म में जो सम्यक् प्रकार से उत्थित नहीं है, दियापोए- द्विज-पक्षी, अपने पोत - बच्चे का पालन करता है, सिस्सा - शिष्य, वाइय - वाचना आदि के द्वारा।
भावार्थ - जिस प्रकार पक्षी अपने बच्चे का पालन करता है उसी प्रकार तीर्थंकर भगवान्
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