Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध )
छडं अज्झयणं पंचमोद्देसो
छठे अध्ययन का पांचवां उद्देशक
चौथे उद्देशक में तीन गारवों के त्याग का उपदेश दिया गया है किन्तु वह परीषह सहन और सत्कार - पुरस्कारात्मक सम्मान का त्याग करने से ही सम्पूर्णता को प्राप्त होता है अतः प्रस्तुत उद्देशक में परीषह - जय का उपदेश दिया जाता है। इस का प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं.
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सेगिसु वा, गिहंतरेसु वा, गामेसु वा, गामंतरेसु वा, णगरेसु वा णगरंतरेसु वा, जणवएसु वा, जणवयंतरेसु वा, गामणयरंतरे वा, गामजणवयंतरे वा, णगरजणवयंतरे वा, संतेगइया जणा लूसगा भवंति, अदुवा फासा फुसंति, ते फासे पुट्ठो वीरो अहियासए ओए समियदंसणे ।
कठिन शब्दार्थ - गिहंतरेसु - गृहान्तरों (घरों के आसपास) में, गामंतरेसु - ग्रामान्तरों में, जणवयंतरेसु - जनपदान्तरों जनपदों के बीच में, ओए - ओज राग द्वेष रहित अकेला, समियदंसणे - सम्यग्दृष्टि, समितदर्शी ।
भावार्थ वह श्रमण घरों में, अथवा गृहों के अंतराल में, ग्रामों में अथवा ग्रामों के अन्तर में, नगरों में या नगरों के अंतराल में जनपद में या जनपदान्तरों में, ग्राम नगर के अंतराल में, ग्राम जनपद के अन्तराल में, नगर जनपद के अन्तराल में विचरण करता है तब कुछ लोग हिंसक - उपद्रवी हो जाते हैं वे कष्ट देते हैं अथवा नाना प्रकार के ( सर्दी गर्मी आदि के) परीषहों के स्पर्श (कष्ट) प्राप्त होते हैं। उन परीषह - कष्टों का स्पर्श पाकर रागद्वेष रहित अकेला वीर (धीर) सम्यग्दृष्टि मुनि उन्हें समभावों से सहन करे ।
धर्मोपदेश क्यों, किसको और कैसे?
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दयं लोगस्स, जाणित्ता पाईणं पडीणं, दाहिणं, उदीणं, आइक्खे, विभए, किट्टे वेयवी ।
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