Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध)
जो भाव से उत्थित - पूर्ण संयम का पालन करने के लिए उद्यत हो उन्हें अथवा अनुत्थित श्रावकों आदि को धर्म सुनने के जिज्ञासुओं अथवा गुरु आदि की पर्युपासना करने वाले उपासकों को संसार सागर से पार करने के लिए धर्म का कथन करे ।
‘अणइवत्तियं' शब्द के टीकाकार ने दो अर्थ किये हैं १. जिस धर्म कथा से रत्नत्रयी का अतिव्रजन - अतिक्रमण न हो वैसी अनतिव्राजिक धर्म कथा कहे अथवा जिस कथा से अतिपात (हिंसा) न हो वैसी अनतिपातिक धर्म कथा कहे ।
२. आगमों में जो वस्तु जिस रूप में कही है उस यथार्थ वस्तु स्वरूपं का अतिक्रमण / अतिपात न करके धर्म कथा कहे।
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(३८७)
अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे णो अत्ताणं आसाइज्जा, णो परं आसाइज्जा, जो अण्णाई पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई आसाइज्जा । कठिन शब्दार्थ - अत्ताणं अपनी आत्मा की, आसाइज्जा
आशातना करे, बाधा
पहुँचाए ।
- भावार्थ विवेक पूर्वक धर्म का कथन करता हुआ साधु अपनी आत्मा की और दूसरों की आशातना न करे तथा न ही अन्य प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों की आशातना करे, न ही उन्हें बाधा पहुँचाए ।
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(३८८)
से अणासायए अणासायमाणे वज्झमाणाणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं
जहा से दीवे असंदीणे एवं से भवइ सरणं महामुणी ।
अणासाग्रमाणे - आशातना
असंदीणे - असंदीन ।
कठिन शब्दार्थ - अणासायए आशातना नहीं करने वाला, नहीं करता हुआ, वज्झमाणाणं - वध्यमान वध किये जाते हुए, भावार्थ आशातना नहीं करने वाला मुनि आशातना नहीं करता हुआ वध किये जाते हुए प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के लिए असंदीन - जल बाधाओं से रहित द्वीप की तरह शरणभूत होता है।
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