Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 00000000000000000000000000000000000000000
(३६२) जस्सिमे आरंभा सव्वओ सव्वप्पयाए सुपरिण्णाया भवंति जेसिमे लूसिणो णो परिवित्तसंति से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च, एस तुट्टे वियाहिए त्ति बेमि।
कठिन शब्दार्थ - सव्वप्पयाए - सब प्रकार से, सुपरिण्णाया - सुपरिज्ञात, लूसिणोलूषक - हिंसक, परिवित्तसंति - भयभीत नहीं होते हैं, वंता - वमन (त्याग) कर, तुट्टे - त्रोटक - भव भ्रमण से छूटा हुआ, संसार के (कर्मों के) बंधनों को तोड़ने वाला। ____ भावार्थ - जिन आरम्भों से हिंसक पुरुष भयभीत (उद्विग्न) नहीं होते हैं, उन आरम्भों को मुनि सब प्रकार, सर्वात्मना जान कर त्याग देते हैं। वे ही मुनि क्रोध, मान, माया और लोभ का वमन कर (त्याग कर) त्रोटक - कर्म (संसार) बंधन से छूटे हुए कहे गये हैं। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - संयमशील साधक को आरम्भ-समारम्भ एवं विषय भोगों से निवृत्त रहना । चाहिए क्योंकि इनमें आसक्त व्यक्ति कभी सुख-शांति को प्राप्त नहीं करता है। वह रात दिन अशांति की आग में जलता रहता है। जो पुरुष सांसारिक विषयों तथा कामभोगों को छोड़ कर संयम का पालन करता है, वही शाश्वत सुख शांति को प्राप्त करता है।
(३६३) कायस्स वियावाए एस संगामसीसे वियाहिए, से हु पारंगमे मुणी, अविहम्ममाणे फलगावयही कालोवणीए कंखेजकालं जाव सरीरभेउ त्ति बेमि।
॥धूताक्खं णामं छट्ठमझयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - कायस्स - शरीर का, वियावाए - व्यापात - विनाश, संगामसीसेसंग्रामशीर्ष - युद्ध का अग्रिम मोर्चा - हार जीत का निर्णायक स्थल, पारंगमे - पारगामी, अविहम्ममाणे - अविहन्यमानः - परीषहों से पराभूत नहीं होता, फलगावयट्ठी - फलक - लकड़ी के पाटिये की तरह स्थिर, कालोवणीए - मृत्यु काल के समीप आने पर, सरीर भेउशरीर का भेदन, कंखेज - प्रतीक्षा करे।
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